एक घूंसे की वजह से हुआ मेरठ में बवाल?

मेरठ शहर के तीरगरान और बजाजा बाजार में जो हुआ, उसका जिम्मेदार एक घूंसा रहा, जिसे पुलिस केवल देखती रह गई। पुलिस यदि घूंसे का जवाब अपने अनुभव से दे देती, तो यह नौबत न आती। माहौल को समझने के बजाए वेट एंड वॉच की नीति पुलिस पर भारी पड़ गई।

बवाल की जड़ कहां से फैली, इसका खुलासा खुद पुलिस के ही एक अफसर ने रविवार को किया। तीरगरान से हंगामे की शुरुआत दोपहर करीब एक बजे हुई थी। उस समय दोनों समुदायों के लोग आमने-सामने थे। कोतवाली पुलिस भी मौजूद थी। तभी एक समुदाय के व्यक्ति ने दूसरे समुदाय के व्यक्ति को घूंसा जड़ दिया। इसके विरोध में दूसरी तरफ के लोगों ने हंगामा कर दिया।

पुलिस दोनों पक्षों को वहां से हटाने के बजाय मौके पर ही बातचीत में लगी रही। इन 15 मिनटों में पथराव और आगजनी हो गई।

एसपी सिटी ओमप्रकाश सिंह जब तक फोर्स लेकर वहां पहुंचे तो माहौल काफी तल्ख हो चुका था। एक तरफ की भीड़ वहां से हट चुकी थी, लेकिन दूसरी तरफ से नारेबाजी और हंगामा जारी था। फोर्स के नाम पर भले ही शहर के 17 थानों की पुलिस बुला ली गई थी।

लेकिन गिनती में करीब 51 पुलिसकर्मी ही मौजूद थे। कारण हर थाने का फोर्स पहले से ही चुनावी ड्यूटी में है।

पुलिस यह नहीं समझ पाई कि इलाके की फिजा बिगड़ रही है। इस बीच फायरिंग का शोर मचा और पुलिस फोर्स तीरगरान से हटकर बजाजा बाजार पहुंच गई। बाजार बंद हो चुके थे और भीड़ सड़कों पर उतर चुकी थी। पुलिस अफसर शांति की अपील करने के बाद वापस बजाजा बाजार लौटे ही थे कि पत्थरबाजी और फायरिंग होने लगी। ऐसे में पब्लिक तो पब्लिक, पुलिस को ही जान बचानी भारी पड़ गई।