भाजपा के घोषणा-पत्र का आर्थिक एजेंडा
आंतरिक खींचतान और देरी के बाद सोमवार को जारी हुए भाजपा के चुनावी घोषणा-पत्र में आर्थिक मुद्दों पर सुधारों के समर्थक कॉरपोरेट जगत को साधने के साथ-साथ पुरानी पीढ़ी के नेताओं और भाजपा की परंपरागत ट्रेडर लॉबी को भी खुश करने की कोशिश की गई है।
यही वजह है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर नरेंद्र मोदी के नरम रुख के बावजूद मल्टीब्रांड रिटेल क्षेत्र में एफडीआई की छूट नहीं दी गई है।
भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में महंगाई, भ्रष्टाचार और नीतिगत सुस्ती के लिए यूपीए पर निशाना साधते हुए मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को उबारने पर जोर दिया है।
भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में इसके साथ ही कालेधन की वापसी जैसे बड़े चुनावी मुद्दे को प्रमुखता से शामिल किया है, लेकिन आयकर सीमा बढ़ाने, उत्पादों पर मिलने वाली सब्सिडी और गैस कीमतों जैसे विवादित मुद्दों पर इसमें चुप्पी साध ली गई है। हालांकि, इसमें श्रम सुधारों की बात की गई है।
औद्योगिक कॉरिडोर, पीपीपी और नए शहर बसाने जैसे कई मामलों में भाजपा और कांग्रेस के दावों में कोई खास अंतर नहीं है। भाजपा के घोषणा पत्र में कृषि क्षेत्र और किसानों के हितों की बात तो की गई है लेकिन एफसीआई को कामकाज के आधार पर तोड़ने के अलावा ज्यादा कुछ नया और महत्वपूर्ण कदम इसमें नहीं दिखता है।
भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में यूपीए के 10 साल के शासनकाल को टैक्स आतंकवाद और अनिश्चितता फैलाने वाला करार दिया है। लेकिन आम आदमी और वोडाफोन जैसी मल्टी नेशनल कंपनियों को टैक्स की मार से बचाने के लिए पार्टी ने कोई पुख्ता रोडमैप नहीं दिया है। जबकि नितिन गडकरी से लेकर सुब्रमण्यम स्वामी तक भाजपा के कई नेता आयकर खत्म करने का शिगूफा छोड़ चुके हैं।
गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) पर राज्य सरकारों को साथ लेकर चलने की बात कही गई है, लेकिन राज्यों के बीच सहमति कैसे बनेगी, इसका जिक्र नहीं है। महंगाई के मुद्दे को भाजपा ने अपने घोषणा-पत्र में सबसे ऊपर रखा है। कालाबाजारी रोकने के लिए स्पेशल कोर्ट और प्राइस स्टेब्लाइजेशन फंड जैसे उपाय सुझाए गए हैं।