यूपी के लाल ने छत्तीसगढ़ में सीने पर खाईं 15 गोलियां
छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए कालंदी निवासी सीआरपीएफ जवान नीरज का शव बृहस्पतिवार सुबह साढे़ छह बजे गाव पहुंचा। उनके अंतिम दर्शन के लिए हुजूम उमड़ पड़ा। इस दौरान परिजन और ग्रामीण गांव के विकास समेत विभिन्न मांगों को लेकर छह घंटे तक शव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। ग्रामीणों ने डीएम वापस जाओ, सीएम को बुलवाओ के नारे लगाए।
अधिकारियों ने आदर्श आचार संहिता लागू होने की दुहाई दी, लेकिन परिजन सीएम अखिलेश यादव या सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को बुलवाने की मांग पर अड़े रहे। छह घंटे तक चली मान-मनौव्व्ल के बाद परिजन आश्वासनों पर ही मान गए। इसके बाद राजकीय और सैनिक सम्मान के साथ शहीद का अंतिम संस्कार किया गया।
नीरज (32) पुत्र रामपाल सीआरपीएफ की 80 बटालियान में जवान थे। 11 मार्च को सुकमा में शहीद हुए नीरज के सीने पर गोलियों के 15 निशान पाए गए। बृहस्पतिवार सुबह उनके अंतिम दर्शन के लिए पूरा ठाकुर चौबीसी उमड़ पड़ा। क्या नेता, क्या मजदूर और क्या किसान, सभी अपना काम छोड़कर कालंदी पहुंच गए। सीओ बले सिंह और एसओ प्रदीप कुमार भी पुलिस बल के साथ पहुंच गए।
गांव में शहीद को राजकीय और सैनिक सम्मान से अंतिम संस्कार करने की तैयारी शुरू हो गई थी, लेकिन शहीद के बडे़ भाई ने पहले गांव के विकास और परिवार के आर्थिक मदद की घोषणा करने की मांग की। घोषणा से पहले अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया।
डीएम पंकज यादव और एसएसपी ओंकार सिंह ने आदर्श आचार संहिता लागू होने की बात कही तो ग्रामीण धरने पर बैठ गए और डीएम वापस जाओ के नारे लगाने लगे। साथ ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव या सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को बुलाने की मांग करने लगे। लगभग छह घंटे बाद मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सतपाल सिंह और मेरठ सीट से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी कालंदी के ही डॉ. मेजर हिमांशु ने पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी तो लोग शांत हुए। सीआरपीएफ के डीआईजी (रामपुर) चंद्रभूषण ने विभाग और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दी जाने वाली सहायता के बारे में जानकारी दी।
इसके बाद दोपहर साढ़े 12 बजे शहीद का राजकीय और सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। मुखाग्नि छोटे भाई विनोद उर्फ रोहताश ने दी। इस दौरान ग्रामीणों ने जब तक सूरज चांद रहेगा, तब तक तेरा नाम रहेगा के नारों के साथ नीरज को अंतिम विदाई दी। विधायक गुलाम मोहम्मद के देरी से पहुंचने पर उन्हें ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा। ग्रामीणों का कहना था कि अपने क्षेत्र के गांव के जवान के शहीद होने के बाद भी विधायक वे दो दिन बाद गांव आ रहे हैं। उन्हें उसी दिन या अगले दिन आना चाहिए था।