मुजफ्फरनगर दंगा : अखिलेश सरकार शुरुआती लापरवाही का जिम्मेदार

मुजफ्फरनगर दंगे की जांच को सीबीआई को सौंपने या विशेष जांच टीम (एसआईटी) गठित करने की मांग वाली एक याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुजफफरनगर के दंगों की सीबीआई के जरिए जांच की जरूरत नहीं है, राज्य सरकार की ओर से पर्याप्त कदम उठाए गए हैं।

हालांकि एक महत्वपूर्ण फैसले में सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को शुरुआती लापरवाही का जिम्मेदार ठहराया है।

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही है।खास खुफिया जानकारी राज्य सरकार को देने के मामले में केंद्र ने कोर्ट में कोई हलफनामा नहीं रखा।

सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से हाजिर हुए अधिवक्ता ने कहा कि सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया है। किसी धर्म विशेष की तरफ कोई पक्षपात नहीं किया गया।

राज्य सरकार के वकील ने कहा कि पीडितों को दिए गए मुआवजे की रकम को कोर्ट द्वारा बढाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 10 लाख से बढाकर 13 लाख रुपए कर दिया है और साथ ही पीडितों को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 13 लाख के साथ-साथ केंद्र द्वारा दिए जाने वाले दो लाख रुपए की सहायता भी स्वीकार की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ और निर्देश भी दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि जिन्हें पांच लाख रुपए मुआवजा दिया गया। वो भी अपने पुराने घरों में जा सकते हैं और उनकी सुरक्षा राज्य सरकार मुहैया कराए।

इससे पहले अखिलेश सरकार ने कहा था कि जिन 1800 परिवारों को पांच लाख रुपए का मुआवजा मिला है, वे अपने घर नहीं लौट सकते।

तल्ख टिप्पणी करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अखिलेश सरकार शुरुआत में मामले की गंभीरता समझने में नाकाम रही और खुफिया एजेंसियां भी स्थिति को भांपने में पूरी तरह असफल रहीं।

हालांकि कोर्ट ने कहा कि जो कदम प्रदेश सरकार ने उठाए हैं, उसको देखते हुए अन्य जांच की फिलहाल जरूरत नहीं है।

यूपी सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि राज्य सरकार ने रेप पीडितों को पांच लाख रुपए का मुआवजा दिया है और जो बच्चे मारे गए उनके परिजनों को भी मुआवजे का प्रावधान है।