भारत के सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा पाए चरमपंथी देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है।
भुल्लर को 10 सितंबर, 1993 को दिल्ली में युवक कांग्रेस के कार्यालय को निशाना बनाकर किए गए विस्फोट के लिए साल 2001 में एक टाडा अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी।
हमले में तत्कालीन युवा कांग्रेस के अध्यक्ष मनिंदरजीत सिंह बिट्टा गंभीर रूप से घायल हुए थे। लेकिन उनके नौ सुरक्षाकर्मियों की हमले में मौत हो गई थी और 25 अन्य लोग घायल हुए थे।
फांसी की सजा के खिलाफ भुल्लर ने सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका दायर की थी। न्यायालय ने इसे अप्रैल, 2013 में खारिज कर उनकी मौत की सज़ा को कम करने से इनकार कर दिया था।
उनकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने भी खारिज कर दिया था।
इसके बाद भुल्लर की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपने पति को ‘मानसिक रूप से असुंतलित’ बताते हुए एक याचिका दायर की थी।
रोक
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 31 जनवरी को भुल्लर की फांसी की सजा पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी थी।
सरकार ने पहले भुल्लर की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का विरोध किया था। लेकिन बाद में सरकार ने अपने रुख में नरमी लाते हुए भुल्लर की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने पर सहमति जताई थी।
सरकार ने अदालत में माना था कि भुल्लर को फांसी की सजा के खिलाफ दया याचिका पर फैसला लेने में देरी हुई थी।
देवेंदर पाल सिंह भुल्लर का साल 2011 से दिल्ली के एक मानसिक चिकित्सा संस्थान में इलाज चल रहा है।