राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। जब जिसे, जहां मौका मिलता है चौका मारने में पीछे नहीं रहता।
इसी क्रम में बसपा का झंडा थामकर संसद की दहलीज पार करने वाले सुरेंद्र नागर पार्टी का दामन छोड़ सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं, जिसके बाद गौतम बुद्ध नगर सीट पर मुकाबला और रोचक होता नजर रहा है।
टिकट कटने से नाराज नागर चुनाव प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ओर इसका सीधा नुकसान अब बसपा को होना लगभग तय माना जा रहा है।
‘नमो’ की हवा में बसपा को अपनी सीट बचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। इस बीच उसके अपने सिपहसालार ही विरोधी झंडा उठा चुके हैं।
2009 में गौतमबुद्ध नगर की सीट पहली बार अस्तित्व में आई और सुरेंद्र सिंह नागर बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। समीकरण बदले और 2014 में उनका टिकट काट दिया गया। इससे नाराज होकर उन्होंने बसपा छोड़ सपा का दामन थाम लिया।
बदले हालात में बसपा को कई मोर्चों पर तैयारी करनी पड़ेगी। वहीं, दूसरी तरफ गुर्जर वोटों को लेकर भी समीकरण काफी बदलेंगे। बीते चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो नागर के आने से सपा का खेमा मजबूत होता दिखाई दे रहा है।
2009 में बसपा के सुरेंद्र सिंह नागर को 2,45,613 (33.24 फीसदी), भाजपा के डॉ. महेश शर्मा को 2,29,709 (31.08 फीसदी), सपा के नरेंद्र सिंह भाटी को 1,18,584 (16.05 फीसदी) और चौथे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी रमेश चंद्र तोमर को 1,16,230 (15.73 फीसदी) वोट मिले थे।
इस प्रकार 2014 के चुनाव में सुरेंद्र सिंह नागर को छोड़कर भाजपा, सपा और कांग्रेस के पुराने प्रत्याशी ही मैदान में हैं। लेकिन सपा के नरेंद्र भाटी को अब सुरेंद्र सिंह नागर का समर्थन मिल गया है, जिसके बाद गौतमबुद्ध नगर सीट का चुनाव रोचक हो गया है।
बसपा सांसद सुरेंद्र नागर का गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र मे दलित, मुस्लिम, गुर्जर गठजोड़ के जातीय समीकरण से खासा दबदबा है।