main newsअपना ब्लॉगअपनी बातबिहारभारतराजनीति

हे गंगा मईया

बीते बर्ष 2013 में नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक रैलियों का एक इतिहास रच दिया। 29 दिसंबर को राँची में हुई उनकी मेगा रैली बीते बर्ष की उनकी आखिरी रैली थी। मोटे तौर पर देखें तो अमूमन हर रैली में नरेंद्र मोदी ने कुछ ऐसा सगूफा छोड़ा की मीड़िया और विपक्षी दलों के नेता उनके बयानों पर पूरे सप्ताहंत तक चर्चा और भर्तस्ना करते दिखे। हालांकि इन सब के बीच मोदी ने कई सामयिक और मर्माहिक मुद्दों को भी छुआ।

इसी क्रम में वाराणसी में 20 दिसंबर की रैली में नरेंद्र मोदी ने गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर केंद्र सरकार पर हमला बोला। साथ ही उन्होने वाराणसी और पूरे यूपी में गंगा की भयावह स्थिति के लिए राज्य की समाजवादी पार्टी की सरकार को जिम्मेदार बताया। मोदी के भाषण में गंगा का जिक्र क्या हुआ मानो राजनीतिक मठों में भूचाल आ गया। सभी विरोधी दलों ने इसे मोदी का राजनैतिक स्टंट करार दे दिया। अगर ऐसा मान भी लिया जाये तो इस बहाने ही सही गंगा जैसी प्राणदायिनी नदी में बढ़ते प्रदूषण की ओर उन्होने राष्ट्रीय बहस को मोड़ा तो सही।

गंगा सफाई की आड़ में धन की गंगा

Ganga
Ganga

अमूमन हर धर्म, प्रांत या जाति के लोग गंगा की वर्तमान दुर्दशा पर दुखी हैं। गंगा से देश की एक बड़ी आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित है। परंतु देश का एक ऐसा वर्ग भी है जो गंगा की दुर्दशा से सर्वाधिक लाभान्वित है। गंगा सफाई के नाम पर पिछले तीन दशकों से केंद्र से फूटती धन की गंगा सीधे भ्रष्टाचार की खाड़ी में समाती जा रही है। भ्रष्ट राजनेताओं-अफसरों की मिलीभगत से गंगा सफाई परियोजनायें लगातार असफल हो रही हैं।

केंद्र ने 23 अक्टूबर 2010 को सर्वोच्च न्यायालय में शपथ-पत्र दाखिल कर कहा कि बर्ष 2020 तक गंगा को प्रदूषण मुक्त कर लिया जायेगा। केंद्र की आर्थिक कैबिनेट कमिटी ने अप्रैल 2011 में गंगा की सफाई के लिए पूरी परियोजना पर 7000 करोड़ की भारी-भरकम राशि आवंटित की थी। पूरी राशि का 75% अंशदान केंद्र प्रायोजित था और राज्यों को उनके प्रदेश में होने वाली विश्व बैंक ने इस योजना पर 1 बिलियन डालर(5600 करोड़ रूपये) की ऋण मंजूर की है। अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर नदियों की सफलतम सफाई योजनाओं से प्रेरित होकर इस परियोजना में यह भी ध्यान रखा गया कि उन गलतियों की पुनरावृति नहीं होने पाये जैसा गंगा एक्शन प्लान पर हो चुका है। इसके लिए प्रोजेक्ट में तय किया गया कि पहले पानी की सफाई की जायेगी। इसके लिए गंगा के उद्गम से लेकर बंगाल की खाड़ी तक  छोटे-बड़े शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्थापना होनी थी।

गंगा नदी की सफाई को लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत, फरवरी, 2009 में बनी अत्यंत महत्वकांक्षी नेशनल गंगा रीवर बेसिन परियोजना(NGRBP) को बिहार सहित कुल पांच राज्यो में बर्ष 2009 में एक साथ लागू किया गया था। प्रधानमंत्री को NGRBP के अध्यक्ष बनाने के साथ ही बिहार समेत यूपी, उतराखंड, झारखंड और पं.बंगाल(गंगा के गुजरने वाले रास्ते) के मुख्यमंत्रीयों को अथारिटी का सदस्य बनाया गया। मालूम हो कि योजना खर्च का सिर्फ 25% राशि ही राज्य सरकार को देना है और शेष भार केंद्र ले रही है। परंतु केंद्र समेत पांचो राज्य सरकारे गंगा जैसी जीवनदायिनी नदी के संरक्षण में अत्यंत उदासीन है। फिर बिहार में गंगा की सफाई को लेकर जो वास्तविक स्थिति है वह हतप्रभ कर देने वाली है।

इस परियोजना के अनुपालन में जहाँ देश के अन्य राज्यों की स्थिति कमोबेश ठीक है वहीं बिहार स्थिति अत्यंत चिंताजनक। यहाँ गंगा आज भी बदस्तूर मैली की जा रही है। साथ ही गंगा तटों पर गंदगी और बदबू से बुरा हाल है। छोटे-बड़े उद्दोगों से लेकर शहरों की गंदगी जिस तरह गंगा में गिराई जा रही है उससे राज्य सरकार की कार्यदक्षता सवालों के घेरे में है। बिहार शहरी आधारभूत विकास कारपोरेशन(BUIDCo) को बिहार सरकार ने गंगा सफाई की पूरी जिम्मेदारी दी। इसके लिए बिहार में पटना, बेगूसराय, बक्सर, हाजीपुर, मुँगेर में सीवरेज नेटवर्क और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट(STP) बनने थे। पटना में सैदपुर, बेउर, पहाड़ी और करमलीचक में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट(STP) बनाये गये जिनकी संयुक्त क्षमता 119 MLD(Million Litre per Day) है, जो कभी भी अपनी क्षमता के आधे भी काम नहीं कर पाये। बीते महीने अचानक ही पूरी योजना में तकनीकी फाल्ट बताकर खत्म कर दिया गया। इससे 200 करोड़ से अधिक की धनराशि बर्बाद हुई। हद तो यह की फिर से पूरा खाका(DPR) तैयार किया जा रहा है, और फिर से भ्रष्टाचार की खाड़ी मुँह बाये खड़ी है।

परंतु खासकर बिहार में जिस गति और स्थिति से इस योजना पर काम चल रहा है उसे लेकर पूरी परियोजना की सफलता अभी से ही संशय में है। बिडको के ज्यादातर अधिकारियों को योजना की जानकारी तक नहीं है। इतना ही नहीं, गंगा रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के अंतर्गत बिहार में कोई काम ही नहीं हुआ है, जबकि पश्चिम बंगाल सरकार ने काफी प्रशंसनीय तरीके से नदी तट के बड़े हिस्से को टूरिस्ट स्पाट के रूप में विकसित कर लिया है।

खैर, स्थिति चाहे जो हो गंगा में बढ़ता प्रदूषण निश्चित ही निष्क्रियता और राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है। बात नर्मदा की हो या फिर यमुना या गंगा कि नदियाँ जीवनदायिनी हैं और उसको लेकर राजनीति की नहीं राजनैतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। हमें ध्यान रखना होगा कि राजनीति की नैया पार कराने भर का माध्यम न रह जाये और एक नया नारा तैयार हो – चुनावी नैया… पार करा देयय ऐ गंगा मैया… ।

अमित सिन्हा

अमित सिन्हा अपने 6 वर्षों के अनुभव के साथ साथ द्विभाषी पत्रकार है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस और अन्य मीडिया हाउस के साथ काम किया है और नियमित रूप से राजनीतिक खबर और अन्य मुद्दों पर लिखते रहते हैं .अमित सिन्हा बिहार में पटना में रहते है और एन से आर खबर के साथ अपने मिशन मैं शामिल हैं . आप इन्हें फेसबुक पर भी फालो कर सकते हैं https://www.facebook.com/indianxpress

Related Articles

Back to top button