कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी रविवार सुबह अचानक मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों से मिलने शामली पहुंच गए।
उन्होंने वहां तीन राहत कैंपो का दौरा किया और पीड़ितों की दिक्कतों को जाना। हालांकि इस दौरान उन्हें काले झंडे दिखाए गए और कई जगह कांग्रेस के खिलाफ नारेबाजी भी सुननी पड़ी।
राहुल के आईएसआई वाले बयान पर लोगों में जबर्दस्त गुस्सा दिखा यही वजह रही कि वे लोई राहत शिविर में नहीं जा सके।
बताते चलें कि आज सुबह अचानक सड़क मार्ग से बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी दंगा पीडि़तों का हालचाल लेने मलकपुर राहत शिविर पहुंचे।
उन्होंने तंबुओं में जाकर पीडि़तों से बातचीत की और उनकी मुश्किलों के बारे में जानकारी ली।
अकबरपुर सुन्हेटी गांव के पास जिस समय राहुल गांधी का काफिला गुजरा तो वहां लगे शिविर के लोग उनकी गाड़ी के सामने आकर रूकने की मांग करने लगे। राहुल गांधी यहां भी रूके और कैंप में जाकर समस्याएं सुनी।
दंगा पीडि़तों ने राहुल गांधी से कहा कि वह अपने गांव नहीं लौटेंगे। उन्होंने जमीन व छत उपलब्ध कराने की मांग रखी।
राहुल ने आरोप लगाया कि जिन सांप्रदायिक ताकतों ने दंगों की साजिश रची थी, वे नहीं चाहते कि दंगा पीड़ित वापस अपने घर लौटे।
उन्होंने यह भी कहा कि वह दंगा पीडि़तों की समस्याएं सुनने के लिए ही यहां आए हैं। उन्होंने लोगों को समस्याएं सुलझाने का भरोसा दिया।
राज्य सरकार भी दंगा पीड़ितों की मदद नहीं कर पा रही है। राहुल के साथ यूपी के प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह थे। कांग्रेस के शामली जिलाध्यक्ष अयूब जंग भी उनके साथ थे।
राहुल गांधी को वहां मौजूद अफसरों ने बताया कि सरकार दंगा पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर 44 करोड़ रुपए बांट चुकी है और राहत शिविरों में पूरी सहूलियतें उपलब्ध कराई जा रही हैं।
राहुल ने दंगा पीड़ितों से कहा कि वे घर नहीं लौटेंगे, तो दंगा कराने वाले इन हालात का सियासी फायदा उठाएंगे।
पिछले कुछ दिनों से ठंड के कारण राहत शिविरों में बच्चों के मरने की खबरें आ रहीं थी। बीते दो दिनों से केंद्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम ने भी यहां पहुंचकर राहत शिविरों का जायजा लिया था।
गौरतलब है कि सितंबर में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों में 60 लोगों की जान चली गई थी और करीब 50 हजार लोगों ने घर छोड़ दिया था।