केंद्र की सत्ता के सेमीफाइनल में कांग्रेस की करारी हार के बाद यूपीए सरकार को एक बार फिर लोकपाल बिल की याद आई है। रद्दी की टोकरी में फेंक कर बिल को भुला चुकी सरकार अब इसे शुक्रवार को राज्यसभा में पेश करेगी।
उसकी योजना सोमवार को बिल पर छह घंटे की चर्चा करा कर इसे पारित कराने की है। सरकार के इस कदम को राजनीति में आम आदमी पार्टी (आप) की धमाकेदार एंट्री और इसके ठीक बाद समाजसेवी अन्ना हजारे का जनलोकपाल पारित कराने के लिए फिर से अनशन पर बैठने से उपजे दबाव का नतीजा माना जा रहा है।
हालांकि पांच दिसंबर से शुरू हुए सत्र में जारी हंगामे के बीच इस बिल का पारित होना फिलहाल संभव नहीं दिख रहा। वैसे भी सरकार की सहयोगी सपा ने इस बिल का खुल कर विरोध किया है। जबकि अन्य दलों ने बिल को समर्थन का भरोसा दिया है।
उल्लेखनीय है कि कई नाटकीय घटनाक्रमों का गवाह बन चुका यह बिल अन्ना के आंदोलन नरम पड़ने के साथ ही ठंडे बस्ते में चला गया था।
हालांकि इससे पहले बिल को लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में हाईवोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बीच संसद की प्रवर समिति को भेज दिया गया था। बाद में प्रवर समिति की सिफारिशें आने के बाद भी सरकार बिल पर चुप्पी साधे बैठी थी।
चौतरफा दबावों का ही नतीजा है कि शीत सत्र को समय से पहले खत्म करने का मन बना चुकी सरकार ने अचानक लोकपाल बिल को पेश करने का मन बनाया है।
बृहस्पतिवार को राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति (बीएसी) की बैठक में बिल पर चर्चा के लिए सोमवार का दिन और छह घंटे का समय तय किया गया है। हालांकि जिस प्रकार से शीत सत्र में अब तक हंगामे के कारण कोई कामकाज नहीं हुआ है, उसके कारण इस बिल के कानूनी जामा पहनने में संदेह है।
वैसे भी मूल बिल में परिवर्तन होने के कारण इस बिल को राज्यसभा की मंजूरी दिलाने के बाद फिर से लोकसभा में पेश करना होगा। मालूम हो कि आप के साथ-साथ अन्ना भी सरकार के इस लोकपाल बिल को पहले ही अस्वीकार कर चुके हैं।