संसदीय कार्यमंत्री आजम खां के निजी स्टाफ द्वारा उनके साथ काम करने से इन्कार के बाद शासन के तेवर को कर्मचारी संगठन 1994-95 के मामले की ओर बढ़ता देख रहे हैं।
सचिवालय संगठन से जुड़े नेता शासन के संभावित कड़े कदम के मद्देनजर प्रदेश स्तर के दूसरे कर्मचारी संगठनों से भी संपर्क साधने लगे हैं।
हालांकि, उन्होंने भी शासन के अगले कदम तक चुप्पी साध ली है।
मंत्री और निजी सचिवों के ताजा विवाद से दुखी सचिवालय के एक सेवानिवृत्त अधिकारी (नाम न छापने के आग्रह के साथ) बताते हैं कि सचिवालय में जब कभी कर्मचारी संगठनों और शासन के बीच टकराव की नौबत बनी है, नुकसान शासन को उठाना पड़ा है।
सरकार की इस कमजोर नस का कर्मचारी संगठन मौके-बेमौके फायदा उठाते हैं। सरकार को जब गरम रुख अपनाना चाहिए तब वह नरम हो जाती है और जब विवेक से काम लेना चाहिए तब सख्त रुख्त दिखाती है।
वह बताते हैं, ‘सचिवालय कर्मियों ने पांच वर्ष के भीतर जितने लाभ पसरकार से लिए उनमें तमाम र वित्त विभाग ने तर्क के साथ आपत्ति लगाई।’ मगर, सरकार ने घुटने टेकते हुए फैसले कर दिए। वह ऐसा मामला था जब कर्मचारी संगठनों को आमजन का समर्थन नहीं मिलता।
मौजूदा मामला जिस तरह से सामने आया है, आम लोगों की सहानुभूति कर्मचारियों के साथ दिख रही है। ऐसे में इस मामले को बुद्धिमानी से सुलझाने की जरूरत है। मगर संकेत ठीक नहीं मिल रहे।
1994-95 में क्या हुआ था?
जानकार बताते हैं कि 1994-95 में कुछ सामान्य मांगों को लेकर सचिवालय कर्मियों ने आंदोलन शुरू किया था। सरकार ने गौर नहीं किया तो वे हड़ताल पर चले गए। लंबी हड़ताल चली। सचिवालय कर्मियों की मांगें आम कर्मचारियों की मांगों से जुड़ी थीं, लिहाजा वे भी मैदान में आ डटे।
सरकार को सख्त रुख अख्तियार करना पड़ा। सचिवालय संगठनों के साथ तमाम कर्मचारी नेता रामपुर से लेकर गोंडा व सीतापुर तक की जेलों में ठूंस दिए गए। पर, बाद में हुआ क्या?
न सिर्फ सरकार ने मांगें मानीं, बल्कि जिन कर्मचारियों को जेल में ठूंसा था उनके केस भी वापस लिए। सरकार को छोटे से मामले में इस रास्ते पर जाने से बचना चाहिए।
उधर, सचिवालय संघ व सचिवालय के अन्य कर्मचारी संगठनों ने सरकार के संभावित रुख को लेकर अन्य कर्मचारी संगठनों से संपर्क बढ़ा दिया है।
गौर करने वाली बात
मंत्री के जिस स्टाफ ने बगावत की है उनमें कई ऐसे थे जो मंत्री की नाक के बाल माने जाते थे। इनमें से कई तो पिछले कार्यकाल में भी उनके साथ काम कर चुके थे और इस बार उनकी पसंद पर ही लाए गए थे।
दो निजी स्टाफ तो ऐसे थे जिनकी तारीफ करते हुए मंत्री कई बार दूसरे स्टाफ को यहां तक नसीहत देते रहे हैं कि उनके मन की बात ये जान जाते हैं जबकि तुम इतने नासमझ हो कि कुछ जान ही नहीं पाते।
अगर ऐसे विश्वसनीय स्टाफ अचानक काम न कर पाने की स्थिति में पहुंच गए तो शासन व सरकार को सबसे पहले यह वजह तलाशनी चाहिए थी। इसके बाद स्थिति को संभालने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए थे।
क्या हैं उपाय
अब भी इस मामले को तूल देने के बजाय सुलझाया जा सकता है। इसके लिए हज हाउस के स्टाफ के आने से रास्ता बन गया है। मंत्री को लिखा पत्र सचिवालय संगठनों के जरिए मीडिया में आने के लिए नियमानुसार आगाह कर उनके निजी स्टाफ को दूसरी जगह तैनात किया जा सकता है।
मंत्री से पूछकर उनकी पसंद के दूसरे स्टाफ की तैनाती की जा सकती है। इसके बाद सचिवालय के कर्मचारी संगठनों को भी शांत करने का रास्ता बन जाएगा।
माना जा रहा है कि यदि मंत्री के निजी स्टाफ के खिलाफ बिना कार्रवाई के उन्हें अन्यत्र तैनाती दे दी जाएगी तो निजी सचिव संघ मंत्री के साथ काम न करने के निर्णय पर नरम रुख अपना सकता है।