भारतीय राजनीति में नीतिश कुमार ने ही मौड्यूल की राजनीति की शुरूआत की। पथ निर्माण के लिए मौड्यूल, कृषि के लिए मौड्यूल और समावेशी विकास के मौड्यूल। परंतु अपनी पहली पारी की बेहतरीन शुरूआत करने वाले नीतिश कुमार इन मौड्यूल्स के प्रचार में इतने व्यस्त हुए कि आतंकी मौड्यूल ने उन्हें माइनारिटी बन कर कुछ यूँ घेरा कि उनकी समझ ही बौनी पड़ गयी।
समस्तीँपुर, दरभंगा मधुबनी समेत कई जिले पूर्णतः आतंकियों के अभ्यारण्य बन चुके हैं। जहां केंद्रीय ऐजेंसियों के सख्त रवैये के कारण दिल्ली में बाटला इंकाउंटर के बाद यूपी के ‘आजमगढ़ मॉड्यूल’ को ध्वस्त किया जा सका वहीं बिहार में सरकारी संरक्षण के कारण इन ‘दरभंगा मॉड्यूल / मधुबनी मॉड्यूल’ ने खूब पैर पसारे हैं। आतंकियों को पनाह देने वाले इस कदर बेफिक्र है कि राजधानी पटना के सबसे प्रमुख फ्रेजर रोड में स्थित होटल में ब्लास्ट का ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है, विस्फोटक जमा किये जाते हैं। काबिले गौर है कि इस होटल का मालिक सताधारी जदयू के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का नेता है और पटना 27 अक्टूबर को हुए आतंकी हमले के तीसरे दिन यह नीतिश कुमार के साथ पार्टी के शिविर में राजगीर में दिखता है।
नरेंद्र मोदी की 27 अक्टूबर की रैली में पटना में हुए आतंकी हमले के बाद नीतिश आतंकवाद की जगह मोदी पर हमले कर रहे हैं। इससे नीतिश की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कभी मोदी की इतिहास की जानकारी पर सवाल उठाकर, तो कभी तीसरे मोर्चे के प्रति उनकी छटपटाहट, फिर मोदी पर पलटवार और फिर यह कहना कि किसी का लालकिले का सपना कभी पूरा नहीं होगा। आतंकी हमले के बाद के चार संवेदनशील दिनों में इन राजनैतिक मुद्दो मुख्यमंत्री से ऐसे अप्रासंगिक बयानों की अपेक्षा नहीं थी। जरूरत थी कि मुख्यमंत्री कड़े कदम उठाते। सुऱक्षा खामियों पर मिटिंग करते। अपने पार्टी के उस नेता को बर्खास्त करते जिसके होटल में विस्फोट की तैयारी की गई थी। पटना सचिवालय के उस अल्पसंख्यक अधिकारी को गिरफ्तार करते जिसके घर पर रूक कर आतंकियों ने गाँधी मैदान कर रेकी की।
दिल्ली में फोन पर बातचीत के दौरान प्रख्यात् सुरक्षा सलाहकार डी.पी.ओझा कहते हैं कि माइनोरिटी अपीसमेंट(अल्पसंख्यक तुष्टीकरण) की राजनीति ने आज बिहार को आतंकियों का सेफ जोन बना दिया है। दर्जनों ऐसे केस हैं, जिसमें अनुसंधान में बाधा डाली गई, अनुसंधान रोका गया या फिर जाँच पदाधिकारियों को औब्लाइज किया गया। राज्य या केंद्र में आंतरिक सह बाह्रय सुरक्षा के सबसे मजबूत तंत्र की बागडोर गृह मंत्रालय की होती है। इस मंत्रालय और पुलिस सहित सभी अंतर्निहित विभागों के पास सबसे संवेदनशील सूचनाएँ और इनपुट होती है। लगातार बढ़ते आतंकी हमले, और घटती सजा के लिए कौन जिम्मेदार है- जब गृह-मंत्रालय लंबे समय से मुख्यमंत्री के पास है।
चूँकि भारत एक अत्यंत क्षमाशील देश है इसलिए यहाँ हिंसा का जबाब हिंसा से नहीं दिये जाने की परंपरा है। हम हिंसा फैलाने वालों को और उनके पैरोकारों को बाहर का रास्ता लोकतांत्रित तरीकों से देते हैं। मुस्लिम समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग वर्तमान राजनीति में तुष्टीकरण के बढ़ते कदमों को सिरे से खारिज करता है। इन बुद्दिजीवी मुसलमानो का मानना है कि आतंकियों को अल्पसंख्यक होने के राजनैतिक फायदे तो निःसंदेह मिल रहे है परंतु इस नीति से पूरा अल्पसंख्यक वर्ग आतंकवादीयों के समानांतर प्रोजेक्ट हो गया है। इस राजनीति से भारत में और बिहार में मुस्लिम समाज का बुद्धिजीवी वर्ग खफा है। परंतु मुस्लिम समाज मे इन बुद्दिजीवियों की संख्या इतनी कम है कि उनकी आवाज न तो सता समीकरण को प्रभावित कर पा रही है और न ही सामाजिक कट्टरता को।