यहां कलम, दवात और कागज चढ़ाने से बदलता है ‘भाग्य’!

shrichitrguptjeeभोपाल। कहा जाता है कि भाग्य तो जन्म के साथ ही लिख जाता है, मगर एक स्थान ऐसा है जहां कागज, कलम और दवात चढ़ाने से भाग्य बदलकर नए सिरे से लिख जाता है। यह स्थान मध्य प्रदेश में महाकाल की नगरी उज्जैन में है, जहां भगवान चित्रगुप्त और धर्मराज एक साथ मिलकर आशीर्वाद देते हैं।

उज्जैन नगरी के यमुना तलाई के किनारे एक मंदिर में चित्रगुप्त एवं धर्मराज एक साथ विराजे हैं। यह स्थान किसी तीर्थ से कम नहीं है। मान्यता है कि इस मंदिर में कलम, दवात व डायरी चढ़ाने मात्र से मनोकामना पूरी हो जाती है। यही कारण है कि इस मंदिर में दर्शन करने आने वाले श्रद्घालुओं के हाथों में फल-फूल न होकर कलम, स्याही और डायरी नजर आती है।

चित्रगुप्त और धर्मराज की उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग कथाएं है। भगवान चित्रगुप्त के बारे में कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं ब्रह्मा जी के हजारों साल के तप से हुई है। बात उस समय की है जब महाप्रलय के बाद सृष्टि की उत्पत्ति होने पर धर्मराज ने ब्रह्मा से कहा कि इतनी बड़ी सृष्टि का भार मैं संभाल नहीं सकता।

ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए कई हजार वर्षों तक तपस्या की और उसके फलस्वरूप ब्रह्मा जी के सामने एक हाथ में पुस्तक तथा दूसरे हाथ में कलम लिए दिव्य पुरुष प्रकट हुआ। जिनका नाम ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त रखा।

ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त से कहा कि आपकी उत्पत्ति मनुष्य कल्याण और मनुष्य के कर्मों का लेखा जोखा रखने के लिए हुई है अत: मृत्युलोक के प्राणियों के कर्मो का लेखा जोखा रखने और पाप-पुण्य का निर्णय करने के लिए आपको बहुत शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए आप महाकाल की नगरी उज्जैन में जाकर तपस्या करें और मानव कल्याण के लिए शक्तियां अर्जित करे।

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर चित्रगुप्त महाराज ने उज्जैन में हजारों साल तक तपस्या कर मानव कल्याण के लिए सिद्घियां एव शक्तियां प्राप्त की। भगवान चित्रगुप्त की उपासना से सुख-शांति और समृद्घि प्राप्त होती है और मनुष्य का भाग्य उज्जवल हो जाता है। इनकी विशेष पूजा कार्तिक शुक्ल तथा चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वितीया को की जाती है।

भगवान चित्रगुप्त के पूजन में कलम और दवात का बहुत महत्व है। उज्जैन को भगवान चित्रगुप्त की तप स्थली के रूप में जाना जाता है। धर्मराज के बारे में पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि वह दीपावली के बाद आने वाली भाई दूज पर यहां अपनी बहन यमुना से राखी बंधाने आए थे तभी से वह इस स्थान पर विराजित हैं। कहा जाता है कि धर्मराज द्वारा यहां पर अपनी बहन से दूज के दिन राखी बंधवाने के बाद से भाई दूज मनाया जा रहा है। आज भी यहां पर धर्मराज और चित्रगुप्त मंदिर के सामने यमुना सागर स्थित है। श्रद्घालुओं को इनके दर्शन व पूजन करने से मोक्ष मिलता है।

मंदिर के पुजारी ओम प्रकाश नागर बताते हैं कि भगवान चित्रगुप्त की आरती, पूजन, हवन इत्यादि तो किया जाता है लेकिन विशेष रूप से यहां भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए कागज, एक कलम, और दवात अर्पित की जाती है। दवात और कलम का पूजन किया जाता है। भगवान चित्रगुप्त कलम और दवात के पूजन से प्रसन्न होते हैं और श्रद्घालु की मनोकामना पूरी करते हैं।
श्रद्घालु मीना का कहना है कि किसी के दुर्दिन चल रहे हों और वह अपने भाग्य से परेशान हो, यहां आकर भगवान चित्रगुप्त का कलम, दवात के साथ पूजन कर ले तो उसका भाग्य तक बदल सकता है और उसके अच्छे दिन शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि लेखनी में रूचि रखने वाला यहां आकर कलम, स्याही और डायरी चढ़ा दे तो वह अपनी लेखनी से संसार को जीत सकता है।
एक हाथ में मनुष्यों के कर्मों की पुस्तक और दूसरे हाथ में कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले कलम को लिए भगवान चित्रगुप्त जी यहां विराजमान हैं वहीं उनके आस पास उनकी दोनों रानियां इरावती और नन्दिनी विराजमान हैं। जहां भगवान चित्रगुप्त मनुष्य जीवन के कर्मो का हिसाब किताब रखते हैं वहीं इनकी दोनों रानियां चित्रगुप्त जी के कार्यों में सहायता करती हैं।

चित्रगुप्त जी के ठीक सामने चारभुजाधारी धर्मराज जी एक हाथ में अमृत कलश दो हाथों में शस्त्र एवं एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा के साथ विराजित है। धर्मराज की मूर्ति के दोनों ओर मनुष्यों को अपने कर्मों की सजा देते यमराज के दूत हैं। इतना ही नहीं ब्रम्हा, विष्णु महेश की भी प्रतिमाएं हैं।