उत्तर प्रदेशभारत

आलोचक और कवि परमानंद श्रीवास्तव का निधन

parmanand-srivastav-5279edf973e17_exlहिंदी के जाने-माने आलोचक डॉ. परमानंद श्रीवास्तव का निधन हिंदी आलोचना और हिंदी साहित्य का बड़ा नुकसान है। संगम नगरी इलाहाबाद से भी उनका गहरा नाता रहा है। इसलिए उनके निधन की खबर ने इलाहाबाद के साहित्यिक जगत को भी आहत कर दिया।

वरिष्ठ कथाकार दूधनाथ सिंह ने कहा कि परमानंद बुनियादी तौर पर एक प्रगतिशील आलोचक थे। हालांकि उन्होंने शुरूआत में कविताएं लिखी। बाद में उनका मुख्य कार्य आलोचना से रहा।

नामवर जी के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ‘आलोचना’ के सह संपादक के तौर पर उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने अपने समय में निकलने वाली कथा-कहानी आदि की अद्भुत समीक्षाएं की।

स्त्री लेखिकाओं के उपन्यासों और आत्मकथाओं के बारे में उन्होंने बढ़-चढ़ कर लिखा। उनकी ये रचनाएं हिंदी में स्त्री विमर्श की शुरुआत करती हैं।

वरिष्ठ आलोचक प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि परमानंद श्रीवास्तव ने शुरूआत कविता और कहानी लेखन से की, लेकिन उन्हें ख्याति आलोचना में मिली। उनके सह संपादन में ‘आलोचना’ के कई महत्वपूर्ण अंक निकले। आलोचना का प्रकाशन दोबारा शुरू हुआ तो फासीवाद विरोधी अंक काफी चर्चित रहा।

वह इलाहबाद किसी न किसी कार्यक्रम के बहाने आते रहे। खास यह कि उन्होंने नए लेखकों को काफी प्रोत्साहित किया। उनके व्यक्तित्व में निष्ठा और मेहनत दोनों का संगम था। उनका जाना हिंदी आलोचना का बड़ा नुकसान है।

‘प्रगतिशील आंदोलन का बड़ा नुकसान’
वरिष्ठ आलोचक प्रो. एके फातमी ने कहा कि डॉ. परमानंद श्रीवास्तव से हम लोगों ने वैसे ही सीखा जैसे प्रो. अकील रिजवी से। वह मानवता, सूफीवाद, गांधीवाद और मार्क्सवाद जैसी विचारधाराओं के पोषक थे। वह भारतीय संस्कृति और परंपरा में ढले हुए रचनाकार पीढ़ी के प्रतिनिधि थे। उनका जाना प्रगतिशील आंदोलन का बड़ा नुकसान है।

जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव और सुपरिचित आलोचक प्रणय कृष्ण ने कहा परमानंद जी श्रेष्ठतम आलोचकों में एक थे।

उन्होंने समकालीन कविता पर प्रमुखता से कलम चलाई। वह सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत सजग और सक्रिय थे। उन्होंने आजीवन साम्प्रदायिकता का विरोध किया और अपने इर्द गिर्द प्रगतिशील चेतना तथा संस्कृति की मशाल जलाए रखी।

प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा परमानंद जी का जाना, प्रगतिशील आंदोलन के योद्धा का जाना है। वह साहित्य की लगभग सभी बहसों में निरंतर सक्रिय रूप से भागीदार रहे।

जनवादी लेखक संघ के सचिव संतोष चतुर्वेदी ने कहा कि परमानंद श्रीवास्तव के साथ हिंदी आलोचना का एक महत्वपूर्ण स्तंभ ढह गया है। नए रचनाकारों के लिए उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

NCR Khabar News Desk

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