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बजट संकट से बच गया अमेरिका?

america-shutdown-524d6da416e83_exlअमेरिकी संसद के ऊपरी सदन ने सरकार की क़र्ज़ सीमा बढ़ाने और कामबंदी ख़त्म करने के लिए जरूरी बिल पारित कर दिया है। यह बिल सरकार की क़र्ज़ सीमा ख़त्म होने के कुछ ही घंटों पहले पास किया गया है।

डेमोक्रेट बहुल सीनेट ने 81 के मुक़ाबले 18 मतों से बिल को पारित कर दिया।

अब यह निचले सदन प्रतिनिधि सभा में रखा जाएगा जहां रिपब्लिकन पार्टी ने इसे समर्थन देने की बात कही है।

अमेरिकी सरकार की कर्ज सीमा समाप्त होने में कुछ ही घंटे बाकी थे कि सीनेट इसे अपनी मोहर लगा दी।

इस समझौते के मुताबिक संघीय सरकार की कर्ज सीमा की तारीख बढ़ कर 7 फरवरी हो जाएगी और उसे 15 जनवरी तक खर्च के लिए पैसे मुहैया कराए जा सकेंगे।

बिल के अनुसार सीनेट और प्रतिनिधि सभा के सदस्यों का एक पैनल बनाया जाएगा जो लंबी अवधि के बजट समझौते पर काम करेगा।

‘संकट के क़रीब’

इस विधेयक के तहत सीनेट और प्रतिनिधि सभा के सदस्यों की एक कॉन्फ्रेंस कमेटी बनाई जाएगी जो बजट समझौते की एक दूरगामी योजना बनाएगी।

सीनेट बजट समझौता

अमेरिकी सरकार की क़र्ज़ सीमा बढ़कर 7 फ़रवरी 2014 होगी। सरकार को 15 जनवरी 2014 तक ख़र्च के लिए फंड मुहैया कराया जाएगा। लंबी अवधि के बजट समझौते के लिए सीनेट औऱ प्रतिनिधि सभा की कमेटी बनेगी।

स्वास्थ्य सेवा संबंधी क़ानून के जरिए बीमा छूट हासिल करने वालों का आय सत्यापन होगा।

सीनेट में बहुसंख्यक डेमोक्रैट पार्टी के नेता हैरी रीड ने इसे ‘ऐतिहासिक’ करार देते हुए कहा, “हमारा देश संकट के बहुत क़रीब था, एकदम रुक गए वॉशिंगटन को ये विधेयक फिर से गति देगा।”

राजन‌ीतिज्ञ, बैंकर्स और अर्थशास्त्रियों ने अमेरिकी सरकार की ऋण सीमा बढ़ाने पर समझौता ना होने की सूरत में वैश्विक स्तर पर आर्थिक दुष्परिणामों की आशंका जताई थी।

दरअसल अमेरिका अपनी ऋण सीमा तक इस साल मई में ही पहुंच गया था। अमेरिकी वित्त विभाग के मुताबिक तबसे देश का ऋण अदा करने के लिए वो ‘अभूतपूर्व कदम’ उठा रहा है।

‘ओबामाकेयर’ पर सवाल

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की स्वास्थ्य योजना ‘ओबामाकेयर’ विवादों से घिरी रही है।

ये संकट पैदा हुआ क़रीब 16 दिन पहले, जब रिपब्लिकन पार्टी के कट्टरपंथी विचारधारा वाले सदस्यों ने सरकार के बजट पर सवाल उठाया था।

रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों ने राष्ट्रपति ओबामा की स्वास्थ्य संबंधी योजना ‘ओबामाकेयर’ में बदलाव की मांग की, जिसपर सहमति ना बनने पर 17 साल में पहली बार सरकार कामबंदी करने पर मजबूर हो गई।

21 लाख सरकारी कर्मचारियों में से क़रीब सात लाख को काम पर ना आने को कहा गया। ज़्यादातर राष्ट्रीय उद्यान, म्यूज़ियम, सरकारी दफ़्तर और सेवाएं बंद कर दी गईं।

पेंशन और कई कल्याणकारी योजनाओं के तहत दिए जाने वाले भुगतान पर भी रोक लग गई।

जानकारों के मुताबिक इस राजनीतिक रस्साकशी के दौरान हुए जनमत संग्रहों में दोनों पार्टियों के ही नुकसान हुआ दिखता है लेकिन इस प्रकरण के लिए ज़्यादा मतदाता रिपब्लिकन्स को ही ज़िम्मेदार बताते हैं।

NCR Khabar News Desk

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