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पापा ये क्या? इस बार कुर्बानी पर उसका बड़ा, मेरा वाला बकरा छोटा है …

eid-edi-jpegपापा ये क्या? इस बार कुर्बानी पर उसका बड़ा, मेरा वाला बकरा छोटा है …ये वो सवाल है जिससे हर एक मुसलमान परिवार को कुर्बानी यानी ईद-उल -अज़ह या बकरीद के दो चार दिन पहले वाबस्ता होना पड़ता है। ये सवाल हर मुसलमान को परेशान और उसका जेहनी सुकून छीनने की पूरी कूअत(सलाहियत) रखता है। कुल मिलाके कहूं तो ये सवाल जितना छोटा है इसका फ़लसफ़ा उतना ही कॉम्प्लीकेटेड है।  कॉम्प्लीकेटेड इसलिए कह रहा हूं क्योंकि ये सवाल आपके “ईगो” को हर्ट कर सकता है। आपके अहम को मिट्टी में मिला सकता है। आपके दिन के चैन और रात की नींद को हराम कर सकता है।

न, न कत्तई मेरी मंशा आपके त्योहार को खराब करने की नहीं है। न ही मैं ये कह रहा कि आप पडोसी से बड़ा बकरा काट के उसे ये एहसास दिलाने कि फ़िराक में रहते हैं कि “तुम हैसियत में मुझसे नीचे हो ” मैं तो बस आपको “सच्चाई” से अवगत करा रहा हूं। सच्चाई है तो शायद कड़वी भी लगे आपको “But Who Cares”

हिन्दुस्तान में कल तो गल्फ़ देशों में आज ईद-उल-अज़ह या बकरीद मनाई जा रही है। ईद-उल -अज़ह को इस्लाम की शुरुआत से ही बेहद महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस दौरान हर शहर के प्रमुख बाज़ार सजे रहते हैं, दुकानें आने वालों की भीड़ से पटी पड़ी रहती हैं। कुछ शहरों जैसे हैदराबाद, लखनऊ, मुरादाबाद, बरेली, मैसूर, मुंबई, दिल्ली में तो इस समय आप बाज़ार में आप तिल भी नहीं रख सकते इतनी भीड़ रहती है वहां।  भारत के अधिकतर दुकानदार चाहे वे छोटे कारोबारी हों या बड़े व्यवसाई इस त्योहार का शुमार उन चुनिंदा त्योहारों में करते हैं जब उन्हें बड़ा प्रॉफिट होता है।

टोपी, कुर्ते, जानमाज़, सिवईं और “बकरे” इस त्योहार की प्रमुख रौनक होते हैं। इस दौरान शहर के बाज़ारों में आपको एक से एक बकरे भी देखने को मिलेंगे कोई बकरा जमुनापारी होगा तो कोई सरयूपारी हर बकरे की अपनी एक अलग खूबी अपनी एक अलग पहचान। किसी बकरे में सफ़ेद के ऊपर भूरे या काले के शेड होंगे तो कोई बिलकुल उजला सफ़ेद, बाज़ार में तो कई बकरे ऐसे होंगे जो खाना भी आपकी थाली में से खाएंगे।

happy-eidदुकानदार तो आपसे ये तक कह देंगे “साहब हीरा है हीरा, बिलकुल बच्चे की तरह पाला है”  इन्हीं बाज़ारों में आप देखेंगे कि लोग बकरे के दामों में बार्गेन कर रहे हैं हर कोई इसी टेंशन में रहता है कि कैसे कम दाम में बढियां माल मिल जाए। सब को बस यही टेंशन है कि “यार अपना बकरा पड़ोस  वाले खान साहब, अंसारी साहब, सिद्दीकी साहब, रिज़वी साहब से छोटा न हो और अगर छोटा हो भी गया तो इतना “बदमाश” हो कि अगले के बकरे और बकरा पकड़ने वाले बन्दे को छट्टी का दूध याद आ जाये”। खैर मैं टॉपिक से डाइवर्ट नहीं होना चाहता टॉपिक पर ही रहता हूं लेकिन उससे पहले ज़रा जान लीजिये बकरीद क्या है ?

बकरीद या ईद-उल -अज़ह असल में है क्या ?

ईद-उल-जुहा (बकरीद) -अरबी में ईद-उल-अज़हा का मतलब होता है क़ुरबानी की ईद। एक इस्लामिक लीजेंड के अनुसार पैगम्बर ए इस्लाम (प्रोफेट ऑफ इस्लाम)  हजरत इब्राहिम जिन्हें खलीलउल्लाह यानी “अल्लाह का दोस्त”  कहा जाता है  को एक दिन सपना आया सपने में खुदा ने हजरत इब्राहिम का इम्तेहान लेने के लिए उनसे अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करने को कहा।

ये सपना उन्हें कई दिन आया और फिर एक दिन उन्होंने इस सपने का वर्णन अपनी पत्नी से किया और कहा कि रज़ा-ए-इलाही (ईश्वर की इच्छा) है कि मैं अपनी सबसे प्रिय चीज उसकी (राह) में कुर्बान करूं। तब पत्नी से राय मश्वरे के बाद हजरत इब्राहीम ने अपने अजीज बेटे  हज़रत इस्माइल को अल्लाह के नाम पे कुर्बान करने का फैसला किया।

उनके बेटे ने भी इस काम के लिए ख़ुशी-ख़ुशी हां कर दी। जब वो कुर्बानी देने ही वाले थे तभी हज़रत इस्माइल अदृश्य हो गए और एक भेड़ वहां आ गया और इसके फ़ौरन बाद ही एक भविष्यवाणी हुई जिसमें अल्लाह ने उन्हें (इब्राहीम) बताया की वो तो बस उनका इम्तेहान ले रहे थे और वो अपने बेटे की जगह एक भेंड (male sheep) को कुर्बान कर सकते हैं।

तभी से बकरीद मनाने की शुरुआत हुई। यह पर्व हर साल रमजान के पवित्र महीने की समाप्ति के लगभग 70 दिनों के बाद और इस्लामिक महिने ज़िल -हिज्जा के दसवें दिन मनाया जाता है।

तो ये तो हो गया त्योहार का इतिहास अब बात करते हैं त्योहार की,  मित्रों जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया कि मैं आपको सच्चाई से अवगत कराने वाला हूं तो आपको बताता चलूं कि अब त्योहार भी ज़रा “भौतिकवादी” हो गया हम त्योहार कम और “शोशेबाजी और शो ऑफ” ज्यादा करने लग गए हैं।

जैसा कि मैं आपको ऊपर बता चुका हूं इस दौरान बाज़ारों में आप देखेंगे कि लोग बकरे के दामों में बार्गेन कर रहे होते हैं और हर कोई इसी टेंशन में रहता है कि कैसे कम दाम में बढियां माल मिल जाए। सब को बस यही फिक्र है कि “यार अपना बकरा पड़ोस वाले खान साहब, अंसारी साहब, सिद्दीकी साहब, रिज़वी साहब से छोटा न हो और अगर छोटा हो भी गया तो इतना “बदमाश और शरारती ” हो कि अगले के बकरे और बकरा पकड़ने वाले बन्दे को छट्टी का दूध याद आ जाये ।

मित्रों, मज़े कि बात ये है की जहां इस त्योहार का उत्साह बच्चों में होता है वहीं इस त्योहार के लिए बड़े भी कुछ कम नहीं हैं। ये उनसे भी दो हाथ आगे हैं। बच्चें तो बेचारे भोले और नसमझ हैं उन्हें क्या अच्छे बुरे, महंगे सस्ते का सहूर उन्हें तो बस बकरा चाहिए लेकिन बड़े – भगवान झूठ न बुलवाए क्या कहूं इन बड़ों के बारे में इन्होनें तो हद कर रखी है इन्हें तो बस यही टेंशन रहता है कि कैसे बॉस, दोस्तों और रिश्तेदारों में धौंस जमाएँ कैसे उन्हें ये बताएं कि हमारे यहां बकरीद पर “मटन की नदियां” बहती हैं।

इस दौरान घर के बड़ों को ये फिक्र रहती है कि “यार बॉस घर आ रहे हैं उन्हें फ्राइड चाप खिलाऊं या बोनलेस बिरयानी या फिर स्पाइसी फ्राइड कलेजी”। वैसे भी सही बात है कौन नहीं चाहता अपने सीनियर से नंबर बढ़वाना और इसमें गलत भी क्या है।

आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूं कि इस्लाम में बकरीद के मौके पर दी जाने वाली कुर्बानी की कुछ “गाइडलाइन” हैं कुछ “रुल” हैं। इस्लाम के अनुसार “कुर्बानी के मांस के तीन हिस्से होते हैं जिसमें एक बड़ा हिस्सा गरीबों और बेसहारों का और दो छोटे हिस्से रिश्तेदारों के अलावा आपके और जानने वालों के लिए होते हैं”। कुल मिलाके कुर्बानी गरीबों का हक़ है जो उन्हें अवश्य मिलना चाहिए। लेकिन होता उल्टा है फॉर्मेलिटी के नाते हम एक छोटा सा हिस्सा गरीबों में बाँट देते हैं और बाकी बचे हिस्सों से हम अपने फ्रिज को ठूस लेते हैं।

याद रखिये इस कुर्बानी और इसके गोश्त (मांस ) पर आपका नहीं गरीबों का हक है। ये कुर्बानी उनके लिए है जो हमारी और आपकी तरह रोज़ या हर दूसरे तीसरे दिन मटन नहीं खा सकते। इनके लिए मटन या चिकन किसी सपने से कम नहीं जो ऐसे ही मौकों पर पूरा होता है। याद रखिये ये कुर्बानी का त्योहार आपके हमारे पेट के लिए नहीं बल्कि हमारी रूह के सुकून के लिए है। यूं तो हम रोज़ ही बुरे काम करते हैं लेकिन देखिये न मेरा अल्लाह और आपका भगवान कितना रहीम है वो रोज़ आपको सुधरने के लिए मौके देता है। जिसके मद्देनज़र ये कुर्बानी का त्योहार भी हमारे और आपके लिए सुधरने का मौका है। 

चलिए चलता हूं बकरा खरीदने का टाइम हो रहा है शायद कम दाम में कोई बड़ा बकरा मिल जाएं और उसे लेकर मैं भी शान से बिलकुल राजा महाराजा की ही तरह गली में टहला सकूं ।

ख़ुदा हाफिज़ ईद मुबारक हो आप लोगों को…      

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