आर्थिक सुस्ती की वजह से नौकरियों और वेतन पैकेज में कमी का असर इंजीनियरिंग और एमबीए कॉलेज पर पड़ रहा है। खाली पड़ी सीटों की वजह से ऐसे शैक्षणिक संस्थान बैंकों का कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। इसकी वजह से देश के प्रमुख बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) में इन संस्थानों की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है।
इस रुख को देखते हुए बैंकों ने अब नए कर्ज देने में सख्ती बरतना भी शुरू कर दिया है। भारतीय स्टेट बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार देश के सभी प्रमुख राज्यों में इंजीनियरिंग और दूसरे प्रोफेशनल कॉलेजों में सीटें खाली पड़ी हैं। इसका असर बैंकों द्वारा दिए गए इन कॉलेजों के लोन पर भी पड़ रहा है।
संस्थान कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं, जिससे रिस्ट्रक्चरिंग के आवेदनों की संख्या भी बढ़ी है। भारतीय स्टेट बैंक का जून 2013 तक शैक्षणिक संस्थानों के जरिए 337 करोड़ रुपये का एनपीए हो चुका है।
पंजाब नेशनल बैंक के अधिकारी के अनुसार पंजाब में करीब 42 हजार इंजीनियरिंग कॉलेज की सीटों में से 4,500 से 5,000 सीटें ही भर पाई है। सीटें खाली होने से फीस नहीं आ रही है, जिसकी वजह से डिफॉल्ट बढ़ रहा है।
इंडियन बैंक के अधिकारी के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों के तरफ से लगातार रिस्ट्रक्चरिंग की मांग आ रही है। जून 2013 तक 512 करोड़ की रिस्ट्रक्चरिंग की गई है। इसमें से 31.98 करोड़ रुपये एनपीए हो गए हैं। अधिकारी के अनुसार इस साल तमिलनाडु में पहले चरण की प्रवेश प्रक्रिया में करीब एक लाख सीटें खाली थीं, जो कि कुल सीटों का लगभग 50 फीसदी है।
बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी ने बताया कि जून 2013 तक सर्विस सेक्टर की बैंक के एनपीए में 4.51 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की प्रमुख हिस्सेदारी है।