महंगाई के इस जमाने में इलाज का भारी-भरकम खर्च उठाने में स्वास्थ्य बीमा काफी मददगार साबित होता है।
बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (इरडा) ने बीमा नियमों में कई बदलाव करके हेल्थ इंश्योरेंस की इस सुरक्षा को अब ग्राहकों के लिए और भी पुख्ता, सुविधाजनक और मददगार बना दिया है।
1 अक्तूबर से लागू किए गए नए नियमों से न केवल लोगों के लिए हेल्थ इंश्योरेंस को आसान और कंज्यूमर फ्रेंडली बनाने वाले हैं, बल्कि यह और ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य बीमे की सुरक्षा अपनाने के लिए प्रेरित करने वाले हैं। इस तरह यह नियम बीमा उद्योग के लिए भी फायदेमंद साबित होंगे।
ज्यादा उम्र में भी करा सकेंगे स्वास्थ्य बीमा
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद उम्रदराज लोगों के लिए अबतक स्वास्थ्य बीमे के बहुत सीमित विकल्प थे। ज्यादातर कंपनियों ने हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के लिए 55 से 60 वर्ष की अधिकतम आयु निर्धारित कर रखी थी।
नए नियमों के तहत अब इसे बढ़ाकर 65 वर्ष कर दिया गया है। जाहिर है इससे वरिष्ठ नागरिकों को हेल्थ इंश्योरेंस कराने में सुविधा होगी और कवर भी लंबी उम्र तक मिलेगा।
जीवन भर रिन्यू करा सकेंगे बीमा पॉलिसी
इरडा ने एक बड़ा बदलाव यह किया है कि बीमा कराने वाला व्यक्ति अगर चाहे, तो अब उसे जिदंगी भर के लिए हेल्थ इंश्योरेंस का कवर मिल सकता है।
पुराने नियमों में हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को अधिकतम 70-80 वर्ष की उम्र तक ही रिन्यू कराया जा सकता था।
ऐसे में ज्यादा उम्र तक जीने वाले लोग उस समय ही हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे से बाहर हो जाते थे, जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती थी। अब ऐसा नहीं होगा।
नए नियमों के तहत अब बीमा कंपनियां तब तक पॉलिसी को रिन्यू करने के लिए बाध्य होंगी, जब तक ग्राहक उसे रिन्यू कराते रहना चाहेगा।
क्लेम के बाद नहीं बढ़ेगा पॉलिसी का प्रीमियम
नए नियमों से ग्राहकों को एक बड़ा फायदा यह होगा कि हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम लेने के बाद अब बीमा कंपनियां उनके प्रीमियम में बढ़ोतरी नहीं करेंगी।
नए नियमों के लागू होने से पहले यह एक आम चलन था कि कंपनियां क्लेम लेने वाले ग्राहकों का प्रीमियम बढ़ा देती थी। नए नियमों के तहत ऐसा करने पर रोक लगा दी गई है। अब प्रीमियम तय करने में ग्राहक की क्लेम हिस्ट्री की कोई भूमिका नहीं होगी।
इसके अलावा बीमा कंपनियां क्लेम लेने के चलते ग्राहकों की पॉलिसी रिन्यू करने से भी अब इनकार नहीं कर सकेंगी।
एक समान होंगी अब इंश्योरेंस की शर्तें
हेल्थ इंश्योरेंस को आसान बनाने की दिशा में इरडा ने सबसे बड़ा बदलाव बीमे के नियमों का मानकीकरण करके किया है। यानी कि अब सभी कंपनियों के बीमे से जुड़े नियम नियम एक जैसे होंगे।
इससे पहले मातृत्व (मेटरनिटी), पहले से होने वाली बीमारियों (प्री एक्जिस्टिंग डिजीज) और गंभीर रोगों (क्रिटिकल डिजीज) आदि को लेकर बीमा कंपनियां अपने अलग-अलग नियम निर्धारित करती थीं। अब ऐसा नहीं होगा।
इससे पॉलिसी खरीदते वक्त शर्तों को लेकर ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ेगी। साथ ही बीमे शर्तों को लेकर होने वाली गलत फहमियों और विवादों में भी कमी आएगी।
क्लेम से जुड़े झंझट होंगे दूर
हेल्थ इंश्योरेंस के तहत गंभीर बीमारी तय करने, कमरे का किराया तय करने, डे-केयर इलाज के तहत बीमारी शामिल होगी या नहीं, इसी तरह इलाज देने वाला संस्थान हॉस्पिटल के दायरे में आएगा या नहीं, यह सब तय करने का अधिकार अब बीमा कंपनियों के पास नहीं रहेगा। नए नियमों से बीमा लेने वाले ग्राहकों के लिए बीमा प्राप्त करने की प्रक्रिया आसान हो सकेगी।
सभी कंपनियों को 11 बीमारियों को रखना होगा गंभीर बीमारी की श्रेणी में: नए मानकों के आधार पर 11 बीमारियां अब गंभीर श्रेणी में रखी जाएंगी।
इसके तहत कैंसर जनित बीमारी, पहला दिल का दौरा, कोरोनेरी आर्टरी बायपास ग्राफ्ट, दिल के वाल्व का प्रत्यारोपण या हृदय प्रत्यारोपण, मरीज का कोमा में चला जाना, दोनो गुर्दों का खराब हो जाना, प्रमुख अंग प्रत्यारोपण, अंगों में स्थायी रुप से लकवा हो जाना, पूरी तरह से दिखाई न देना सहित 11 प्रमुख बीमारियों को शर्तों के आधार पर शामिल किया है।
बेड के आधार पर अस्पतालों का मानकीकरण
नए नियम के तहत बीमा कंपनियां या टीपीए उन्हीं अस्पतालों को अपने नेटवर्क में शामिल कर सकेंगी जहां न्यूनतम सुविधाएं तय मानकों के आधार पर उपलब्ध हो।
इसके लिए इरडा ने आबादी के आधार पर अस्पतालों का वर्गीकरण किया है। दस लाख से कम की आबादी वाले शहरों में कम से कम 10 बेड और उससे ज्यादा की आबादी वाले शहरों के लिए कम से कम 15 बेड वाले संस्थान को अस्पताल की श्रेणी के रुप में रखा जाएगा।
इसके अलावा उस अस्पताल में 24 घंटे क्वॉलिफाइड चिकित्सा सेवा देने वाले कर्मचारी का उपस्थित होना अनिवार्य होगा।
क्यों बदले मानक
इन मानकों को जारी करते हुए इरडा ने कहा था कि हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में जागरूकता की कमी के साथ इस तरह की भी शिकायतें आ रही थी कि कंपनियों के द्वारा बीमा पॉलिसी की अपने आधार पर व्याख्या की जा रही है।
जिससे बीमा धारकों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में मानकीकरण से अब सभी कंपनियों के लिए एक निश्चित मानक हो जाएंगे
फॉर्म भी होंगे अब एक जैसे
बीमे से जुड़े विभिन्न कंपनियों के फॉर्मों, जैसे कि प्रपोजल फार्म, क्लेम फॉर्म, प्री ऑथराइजेशन फॉर्म आदि का अलग-अलग होना लंबे समय से हेल्थ इंश्योरेंस को उलझाव भरा बनाता रहा है। इस उलझन को अब सभी कंपनियों के फार्म एक जैसे करने के नियम ने खत्म कर दिया है।
अब किसी किसी एक उद्देश्य के लिए सभी कंपनियों के फार्म एक जैसे ही होंगे। इससे खासकर बीमे का क्लेम करने और उसके निपटारे में सहूलियत हो जाएगी।
साथ ही पॉलिसी की मंजूरी से लेकर क्लेम सेटेलमेंट तक बीमे से जुड़ी विभिन्न प्रक्रियाओं की गति में भी तेजी लाई जा सकेगी।
कंपनियां तय करेंगी क्लेम का सेटेलमेंट
नए नियमों के तहत क्लेम के सेटेलमेंट की प्रक्रिया में बीमा कंपनियों की भूमिका बढ़ाए जाने से इससे जुड़ी उलझनें कम होंगी और सेटेलमेंट की प्रक्रिया में तेजी आएगी।
नए नियमों के तहत क्लेम को मंजूर या नामंजूर करने का निर्णय अब थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) के बजाय बीमा कंपनी द्वारा अपने स्तर पर किया जाएगा।
इसके अलावा कैशलेस इलाज की सुविधा के बारे में भी निर्णय अबं कंपनी की ओर से लिए जाने से इसक्री प्रक्रिया भी आसान होगी।