Kanwal Bharti : मायावती जी, पिछले कितने सालों से लगातार कांग्रेस को समर्थन दे रही हैं, पर उनको अब जाकर पता चला है कि कांग्रेस दलित विरोधी है. यह उनकी भोली नासमझी नहीं है, बल्कि राहुल गांधी ने उनकी जिस दुखती रग पर उंगली रखी है, यह उसकी बौखलाहट है. राहुल गाँधी ने क्या गलत कहा कि मायावती ने अपने अलावा किसी अन्य दलित नेता को उभरने नहीं दिया. कोई बताये कि देश भर में मायावती के बाद बसपा में दूसरे-तीसरे नम्बर का कौन दलित नेता है?
जिस दलित पार्टी को नगर-नगर और गाँव-गाँव में अब तक लाखों नहीं तो हजारों दलित नेता (राजनितिक) पैदा कर देने चाहिए थे, उसी पार्टी में दलित नेतृत्व का सबसे भारी संकट है. यह संकट इसीलिए है, क्योंकि मायावती ने अपनी पार्टी में किसी अन्य दलित नेता को उभरने ही नहीं दिया, सिर्फ इस डर से कि कोई उनकी सत्ता के लिए खतरा न बन जाये. ठीक यही काम मुलायम सिंह यादव ने किया. उन्होंने भी अपने और अपने परिवार के सिवा किसी अन्य ओबीसी नेता को उभरने नहीं दिया. वजह यहाँ भी यही है कि उनकी ओबीसी राजनीति पर उन्हीं का वर्चस्व कायम रहे.
लेकिन क्या कारण है कि भाजपा ने ऐसा नहीं किया. उसने दलितों और पिछड़ों दोनों में नेतृत्व उभारने का काम किया, यहाँ तक कि अल्पसंख्यक समुदायों में भी उसने नेतृत्व उभारा. कांग्रेस ने भी दलित-पिछड़ों में नेतृत्व उभारने का काम किया. निश्चित रूप से यहाँ वैयक्तिक वर्चस्व मूल में नहीं है, बल्कि पार्टी का वजूद मूल में है. लेकिन सपा-बसपा हाईकमान के लिए पार्टी नहीं, खुद अपना वर्चस्व प्रमुख है.
लोकतंत्र में दलित-ओबीसी राजनीति का केन्द्रीयकरण ठीक नहीं है. इसका विकेन्द्रीयकरण होना चाहिए. क्योंकि इसी केन्द्रीयकरण की वजह से दलित-ओबीसी नेतृत्व अपनी ज़मीन पर ही पंगु बना हुआ है. अब समय आ गया है कि नगर-नगर और गाँव-गाँव का बहुजन नेतृत्व सपा-बसपा हाईकमान को यह बताये कि तुम्हारी पार्टियाँ हमारे दम से हैं, ये तुम्हारी निजी मिल्कियत नहीं हैं, तुम्हारा भ्रष्ट और नाकारा नेतृत्व देख लिया, अब हमें मौका दो. (आप कह सकते हैं कि कांग्रेस से जुड़ने के बाद मैं ….(जो भी आप समझें) ….हो गया हूँ, पर जो सवाल मैंने उठाये हैं, क्या आप उस पर भी विचार करेंगे?)
दलित चिंतक और साहित्यकार कंवल भारती के फेसबुक वॉल से.