दिल्ली की जर्जर इमारतों का सच

House-dilapidated-Delhi(अमित सिन्हा)दिल्ली में इमारतें गिरने के कारण हर साल सैंकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। निगम की ओर से इमारतों का सर्वे किया जाता है लेकिन तकनीकी संसाधनों और एक्सपर्ट टीम की कमी से जूझती दिल्ली नगर निगम मैनुअली चेकिंग के आलावे कुछ खास नही कर पाती। बीते पखवारे उतरी दिल्ली के बारा हिंदू राव इलाके में इमारत ढहने के हादसे के बाद निगम का प्रशासनिक अमला थोड़ा जागता दिख रहा है। निगम सूत्रों की मानें तो निगम ने अपने इंजीनियरों की एक टीम बनाकर इस मामले पर खास गंभीर दिख रही है। पहाड़गंज और सिटी जोन की इमारतों से यह मुहिम शुरू की जायेगी जो जल्द ही अन्य इलाकों में जायेगी।

पूरे मामले में सबसे दिलचस्प यह कि दिल्ली को मेट्रोपोलिटन शहर बना देने का दावा करने वाली शीला सरकार अबतक निगम के आधुनिकीकरण को लेकर कोई ठोस प्लान तक नहीं बना पायी है। हर दुर्घटना के बाद अफरातफरी और फौरी तौर पर मुआवजों का खेल चलता रहा है।

आश्चर्यजनक है कि इमारतों की मजबूती मापने के लिए दिल्ली में अथारिटी के पास कोई तकनीकी इंस्ट्रूमेंट तक नही हैं। जाँच टीम नजरों से टटोल कर अपनी जाँच रिपोर्ट बनाती है। न कोई तय मानक, न लैब जाँच की जरूरत और न ही कोई अन्य पैरामीटर। ऐसे में बहुत सी इमारतें अधिकारियों की नजरों से बचती रही हैं। दिल्ली के अत्यंद भीड़भाड़ वाले चाँदनी चौक की बात करें या द.दिल्ली में खानपुर की, दिल्ली में जर्जर इमारतों की कोई कमी नहीं है। प्रशासनिक अधिकारियों की माने तो दिल्ली के मकानमालिक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। कई अधिकारीयों ने पहचान न बताने के शर्त पर स्वीकार किया कि बिल्ड़िंगो को खतरनाक घोषित किये जाने से बचने के लिए ‘पेशगी’ तक देने की कोशिसें की जाती है।

564020_634049853306006_1078079808_nनगर निगम की हालिया सर्वेक्षण रिपोर्ट पर यकीन करें तो नरेला और रोहिणी का इलाका इस मामले में ठीक है।  नरेला के कुल 4695 घरों का निरीक्षण किया गया। उसी प्रकार रोहिणी क्षेत्र में 1,61,353 मकानों की मजबूती की जाँच की गई। जाँच टीम के अनुसार यहाँ की बिल्ड़िंगे फिलवक्त मजबूत है। टीम ने सबसे अधिक खराब स्थिति पहाड़गंज इलाके में पायी। यहाँ कुल 1 दर्जन से अधिक मकान खतरनाक घोषित किये गए। जाँच टीम को नजफगढ़ इलाके में इक्का-दुक्का मकान को छोड़ कर हालात ठीक मिले। निगम अधिकारियों के अनुसार इन सभी मकानों को खतरनाक घोषित कर दिया गया है और संबंधित लोगों को मकान खाली करने का नोटिस भेजा जा चुका है।

अब जबकी नगर निगम मुस्तैद दिख रही है, नये उपकरण खरीदे जा रहे हैं, ताकि बिल्डिंग की मजबूती वैज्ञानिक तरीके से जाँची जा सके, ऐसे में दिल्ली की जनता से भी सहयोग की उम्मीद है। दिल्ली एक भूकंप प्रधान क्षेत्र में है जहाँ इस तरह के प्रयासों की सख्त जरूरत है। वैसे देखा जाये तो इस मामले में सिर्फ नगर निगम ही नहीं ब्लकि केंद्र सरकार की मकान निर्माण संस्था सीपीडब्लूडी(CPWD) को भी जगाने की जरूरत है। उतरी दिल्ली सहित अनेकानेक क्षेत्रों में केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के लिए जो रिहायशी मकान बने हैं उनकी स्थिति दर्दनाक है। दो, तीन और चार मंजिला इन इमारतों की उम्र भले ही कम हो पर निर्माण में अनियमितताओं के कारण 5 से 10 साल में ही ये इमारतें जर्जर हो चुकी हैं।