पेट्रोल वाली कार में अगर गलती से भी डीजल पड़ जाए तो इसके लिए आपको भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। डीजल वाली कार में पेट्रोल डालने के नतीजे भी काफी नुकसानदायक हो सकते हैं।
लेकिन पाइप के टुकड़ों, तारों और अलग-अलग तरह के कल-पुर्ज़ों के बीच बैठे स्टीव सिएटी यही ग़लती बार-बार दोहरा रहे हैं।
ज्यादातर ड्राइवरों के लिए जो महंगी भूल होती है वही सिएटी के लिए डीजल की दक्षता और पेट्रोल की तुलनात्मक सफाई को साथ लाने का एक मौका है।
शिकागो में अमेरिकी ऊर्जा विभाग की ऐरगॉन नेशनल लैबोरेट्री में इंजीनियर इंजन की दक्षता बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। कभी वाहनों में तो कभी खास तौर पर परीक्षण के लिए बने कमरों में।
सिएटी कहते हैं, “घर पर ऐसा करने की कोशिश न करें! निश्चित रूप से एक डीजल इंजन में पेट्रोल डालना स्वाभाविक नहीं है लेकिन जब इसे नियंत्रित तौर पर किया जाए तो न सिर्फ ऐसा संभव है बल्कि अच्छा खासा माइलेज भी हासिल किया जा सकता है। प्रदूषण भी बहुत कम होता है।”
पेट्रोल हो या डीजल इंजन दोनों ही में पिस्टन को चलाने के लिए एक सिलेंडर में ईंधन नियंत्रित रूप से जलता है। सिलेंडर से पिस्टन एक धुरी वाले डंडे से जुड़े होते हैं, जो घूमता है और जिससे गियरबॉक्स के ज़रिए पहिये चलते हैं।
प्रदूषण कैसे कम हो?
हालांकि दोनों ही इंजन जिस तरह से ईँधन को जलाना शुरू करते हैं वो बहुत अलग होता है। पेट्रोल इंजन में स्पार्क प्लग होते हैं जिससे ईंधन और हवा का मिश्रण जलता है वहीं डीजल इंजन में स्पार्क प्लग नहीं होते।
ईँधन को जब इंजन में दबी हुई गर्म हवा में डाला जाता है तो वो जलने लगता है। �
डीज़ल इंजन से ज्यादा माइलेज मिलता है। इसकी कुछ वजह तो ये है कि पेट्रोल इंजन में ऊर्जा का स्तर एक थ्रॉटल से तय होता है जो अंदर आने वाली हवा को नियंत्रित करता है।
कम हवा का मतलब होगा सिलेंडर में ईंधन को जलाने के लिए कम हवा।लेकिन इसका मतलब ये होगा कि इंजन को हवा अंदर लेने के लिए ज्यादा काम करना होगा और इससे माइलेज गिरता है।
ये सब ठीक है लेकिन डीजल इंजन की अपनी सीमाएं हैं। डीजल इंजन से कालिख और नाइट्रोजन ऑक्साइड बहुत पैदा होती है। समस्या असल में ये है कि डीजल बहुत आसानी से जलता है।
ये वैसे ही जलने लगता है जैसे इसे सिलेंडर की गर्म हवा में डाला जाता है यानी ये हवा में ठीक ढंग से मिल भी नहीं पाता।
इसका रसायन जटिल है लेकिन नतीजा ये होता है कि एक अक्षम प्रक्रिया होती है जिसमें कालिख निकलती है और सूक्ष्म कण निकलते हैं, एक टिमटिमाती हुई मोमबत्ती की तरह।
सिएटी का मानना है कि इंजन का माइलेज कायम रखना और प्रदूषण का स्तर गिराना संभव है।
वो कहते हैं, “मैं डीजल मिलाने से काफ़ी पहले पेट्रोल मिला सकता हूं जिससे डीजल अच्छे से हवा में मिल सकेगा और कालिख कम पैदा होगी।”
सिएटी के मुताबिक ऐरगॉन नेशनल लैबोरेट्री में हुए परीक्षणों से पता चला है कि एक डीजल इंजन में पेट्रोल मिलाने से नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 90 फीसदी तक कम हो सकती है और कालिख आधी हो सकती है। अब उनका ध्यान कालिख का स्तर और कम करने पर है।
भविष्य के लिए उम्मीद
सिएटी प्रदूषण घटाने के लिए एक और रणनीति ला सकते हैं क्योंकि ऐसे सिलेंडर में गैसों के पास अच्छे से मिश्रित होने के लिए ज़्यादा समय है।
एक्जॉस्ट गैस रिसर्कुलेशन या ईजीआर तकनीक के ज़रिए इंजन से निकले धुएं को फिर से सिलेंडर में डाला जाता है। इससे ऑक्सीजन का स्तर घटता है और इस तरह नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर भी गिरता है। लेकिन प्रदूषण में इस कमी का मतलब है कि माइलेज में कमी।
सिएटी कहते हैं, “मैं ऑक्सीजन में वो गैस मिला सकता हूं जो इंजन से निकल चुकी है और इस तरह ऑक्सीजन का घनत्व कम हो जाएगा। क्योंकि मैं इसे पहले मिला रहा हूं और इसमें डीजल की तरह की न मिल पाने की समस्या भी नहीं है।”
वो कहते हैं, “मैं ईजीआर को बगैर दिक्कत के चला सकता हूं और नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर भी बहुत कम कर सकता हूं। मैं एक ऐसा ईँधन इस्तेमाल कर रहा हूं जो अपने आप नहीं जलता और इससे प्रदूषित होने वाले कणों का स्तर भी गिरेगा।”
अभी ये परीक्षण सिर्फ प्रयोगशाला तक सीमित हैं। सिएटी कहते हैं, “अगर मैं ऐसा किसी वाहन में करना चाहूं तो ये बहुत मुश्किल होगा क्योंकि तब मेरे पास उस तरह से नियंत्रण की क्षमता नहीं होगी जैसी अभी है।”
लेकिन इसे बदलने के लिए एरगॉन नेशनल लैबोरेट्री बड़ी वाहन निर्माता कंपनियों और तेल कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है।
19वीं सदी से कारों को चला रहे इस तरह के इंजनों में शायद अभी और जान बाकी है।