गांधी जी के व्यक्तित्व ने निःसंदेह पूरे विश्व को अचंभित किया। कोई शक नहीं एक निर्भीक, धैर्यवान, सादगी और विजन से भरपूर गाँधी जी का व्यक्तित्व रहा है। प्रेरणा का स्रोत भी रहे हैं न केवल हिन्दुस्तान के लिए। बल्कि विश्व के लिए भी।
अचानक धाँय धाँय होती है और इसी एक अद्भुद व्यक्तित्व की हत्या हो जाती है। आश्चर्य ये कि इस हत्या वाले मामले पर देश का विचार दो भागो में बंटा दिखाई देता है। अब इसी बिंदु से मेरा विचार शुरू होता है।
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गांधी जी का व्यक्तित्व और गाँधी जी का राजनीति में योगदान, ये एक अलग बात है। कोई संदेह की गुंजाईश ही नहीं कि भारत को सामाजिक रूप से मोबिलाइज करने में और समानता की स्थापना करने में और उसके परिणाम स्वरुप देश के एक होने में एक व्यक्ति होने के नाते अमुल्य योगदान है।
राजनीतिक योगदान से उत्पन्न एक ऐसा व्यक्तित्व जिसे राष्ट्रीय निर्णयों के सम्मिलन में नजरअंदाज कर पाना असंभव कार्य है। ध्यान रहे ये बात अलग है कि कांग्रेस की मेम्बरशिप से 1934 में ही त्यागपत्र दे चुके गांधी जी की सहभागिता कांग्रेस मीटिंग में उनके अद्भुद व्यक्तित्व के कारण ही होती थी।
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स्पष्ट है कि एक व्यक्तित्व वाले गाँधी की हत्या नहीं हुई, वो तो अजर अमर हो गए। जिस गांधी की हत्या हुयी वो राजनीतिक निर्णयों की असफलता वाले गांधी की हुयी। आज भी आप विचार करता देखे गाँधी की हत्या के ऊपर, तो वो उनके व्यक्तित्ब को लेकर नहीं, बल्कि उनके राजनीतिक निर्णयों पर आक्षेप करते हुए होती है।
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मेरा नमन गांधी जी के उस व्यक्तित्व को जिसने कईयों को राह दिखाई है। बाकी राजनीति पर विचार करना आप लोगो पर छोड़ने में ही भलाई है।
राम राम
संजय कोटियाल