इसलिए मेघनाद को मारने में सफल हुए लक्ष्मण
वानर सेना लेकर भगवान राम जब लंका पहुंचे तो रावण के होशोहवास उड़ गए। रावण अपनी विशाल सेना को भगवान राम और लक्ष्मण से युद्घ के लिए भेजा लेकिन वानर सेना की सहायता से भगवान राम सेना सहित रावण के सेनापति का वध करने में सफल हुए। इससे रावण का क्रोध बढ़ गया और उसने अपने पुत्रों को युद्घ के लिए भेजा।
रावण के पुत्रों में मेघनाद सबसे पराक्रमी था। माना जाता है कि जब इसका जन्म हुआ तब इसने मेघ के समान गर्जना की इसलिए यह मेघनाद कहलाया। मेघनाद ने रण भूमि में आकर राम और लक्ष्मण को युद्घ के लिए ललकारा। इसने राम लक्ष्मण पर दिव्य बाण चलाया जो नागपाश में बदल गया। इससे राम लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर पड़े। राक्षस सेना में खुशी लहर छा गई जबकि वानर सेना का मनोबल टूटने लगा।
विपरीत स्थिति देखकर हनुमान जी पवन वेग से उड़ते हुए गरूड़ जी को लेकर आए। गरूड़ जी ने नागपाश को काटकर राम-लक्ष्मण को बंधन मुक्ति किया। राम लक्ष्मण स्वस्थ होकर वानर सेनाका मनोबल बढ़ाने लगे। मेघनाद को जब राम लक्ष्मण के जीवित होने की सूचना मिली तो वह अपनी सेना लेकर फिर युद्घ करने आया।
इस बार लक्ष्मण और मेघनाद का प्रलंयकारी युद्घ आरंभ हुआ। दोनों एक दूसरे पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग करने लगे। दोनों के युद्घ को देखकर आकश के देवता भी हैरान थे। तभी लक्ष्मण ने एक दिव्य वाण भगवान राम का नाम लेकर मेघनाद पर छोड़ दिया।
वाण मेघनाद का सिर काटते हुए आकश में दूर तक लेकर चला गया। मेघनाद की इस स्थिति को देखकर राक्षस सेना का मनोबल पूरी तरह टूट गया और प्राण बचाकर नगर की ओर भागने लगे। रावण को जब मेघनाद की मृत्यु का समाचार मिलता तो शोक के कारण वह जड़वत अपने सिंहासन पर बैठ गया।
इस समय रावण को मेघनाद के जन्म के समय की वह घटना याद आ गई जब रावण ने अपनी ज्योतिषविद्या से सभी ग्रहों को शुभ स्थिति में रहने के लिए मजबूर किया था, ताकि मेघनाद अजेय और अमर बन जाए।
लेकिन शनि महाराज ने रावण की बात नहीं मानी। मेघनाद के जन्म के समय अपना एक पांव आगे बढ़ा दिया। इससे मेघनाद की कुण्डली में अकाल मृत्यु का योग बन गया। और शनि की इसी चाल के कारण लक्ष्मण के हाथों मेघनाद को अकाल मृत्यु प्राप्त हुई। दशहरा के शुभ अवसर पर कल पढ़िए रावण की मृत्यु का अद्भुत रहस्य