राजधानी के चुनाव मैदान में भले ही राजनीतिक दलों में टिकटों की मारामारी मची हो, लेकिन यहां पर कुछ नेता ऐसे हैं जिन्हें अपने टिकट पर लड़ाना दलों की मंशा होती है।
दरअसल, क्षेत्र में इन लोगों के जनाधार के कारण पार्टी का सिंबल नहीं, इन्हें इनका चेहरा वोट दिलाता है। इसी कड़ी में रामबीर सिंह विधूडी को पाने के लिए कांग्रेस व भाजपा की रस्साकशी में भाजपा के हाथ बाजी लगी तो शोएब इकबाल को अपने टिकट से लड़ाने को तैयार करने पर जनता दल यूनाइटेड ने दिल्ली से एक सीट सुनिश्चित कराने की संभावना तलाशी है।
दिल्ली के पिछले चार विधानसभा चुनावों में करीब एक दर्जन सीटों पर वैसे तो एक ही नेता की जीत लगातार होती रही है, लेकिन इनके कभी भी दूसरे दल से न लड़ने पर पार्टी से अलग होकर उनके वजूद को आंका नहीं जा सकता। लेकिन दिल्ली में चार से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां पर हमेशा नेता के नाम पर वोट मिलते रहे हैं।
इनमें मटिया महल, बदरपुर, सीलमपुर व नजफगढ़ सीटों पर राजनीतिक दलों की मजबूरी भी इन नेताओं को रिझाने की हो जाती है। यही वजह है कि इन सीटों के चार में तीन विधायकों की पार्टी व सिंबल इस बार भी बदलना तय हो गया है।
बदरपुर सीट पर राम सिंह नेता जी व रामबीर सिंह विधूडी पार्टी बदल-बदलकर चुनाव लड़ते आ रहे हैं, लेकिन पिछले तीन चुनावों से यह सीट उस राजनीतिक दल के खाते में जाती है, जिसने इन दोनों में से किसी एक पर दांव खेला हो।
मौजूदा विधायक राम सिंह नेताजी यहां से पिछले चार चुनाव बसपा, कांग्रेस व निर्दलीय के रूप में लड़ चुके हैं, इसी तरह 1993 में जनता दल, 2003 में एनसीपी के टिकट पर विधायक बने रामबीर सिंह विधूडी दो बार कांग्रेस के टिकट पर भी चुनाव लड़ चुके हैं। यानी इस सीट पर नेता तो ये दोनों की मुख्य मुकाबले में होते हैं, लेकिन इनकी पार्टी व सिंबल बदलते रहते हैं।
इसी तरह का इतिहास जनता दल यूनाइटेड में बुधवार को पहुंचे शोएब इकबाल भी रखते हैं। मटिया महल विधानसभा सीट से पिछला चुनाव वे लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर तो 2003 में जद एस व 1998 में जनता दल के टिकट पर इसी सीट से जीते। वर्ष 1993 में भी वे जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते। इस बार नीतिश ने उन्हें पुराना साथी बताकर पार्टी में शामिल कर लिया है।
नजफगढ़ से भी भरत सिंह ने पिछला चुनाव निर्दलीय लड़कर जीता। इससे पहले पार्षद रहते हुए भी उनकी अपनी पहचान इलाके में रही। इस बार भी वे चुनाव में ताल ठोंकने जा रहे हैं और राजनीतिक दलों की नजर उन पर है। नजफगढ़ सीट पर 2003 व उससे पूर्व भी अन्य निर्दलीय उम्मीदवारों के जीतने का इतिहास रहा है।
सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र में भी चौधरी मतीन अहमद का कब्जा है। वे 1993 में जनता दल से, 1998 में निर्दलीय चुनाव लड़े जबकि 2003 व 2008 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीते।
चारों सीटों पर पिछले विस चुनाव की स्थिति:
विस क्षेत्र—विजयी प्रत्याशी—पार्टी—कौन हारा—अंतर
मटिया महल—शोएब इकबाल—एलजेपी—मोहम्मद जिया—7604
बदरपुर—राम सिंह नेता जी—बीएसपी—रामवीर सिंह विधूडी—13305
सीलमपुर—चौ. मतीन अहमद—आईएनसी—सीता राम गुप्ता—26274
नजफगढ़—भरत सिंह—निर्दलीय—कंवल सिंह यादव—11453