इनको नहीं मिलेगा आरक्षण का फायदा
सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग की वे जातियां अब आरक्षण का लाभ नहीं पा सकेगी, जिन्हें नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल चुका है। हाईकोर्ट के इस आदेश का प्रदेश की 35 हजार 500 भर्तियों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग की उन जातियों को आरक्षण देने पर रोक लगा दी है, जिनकी संख्या नौकरियों में पहले से ही काफी अधिक हो चुकी है।
आदेश को स्पष्ट करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘पर्याप्त प्रतिनिधित्व’ का अर्थ यह समझा जाए कि आरक्षित वर्ग में जिन जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में 50 फीसदी नौकरियां मिल चुकी हैं, उन्हें अब आरक्षण का लाभ न दिया जाए।
साथ ही सभी सरकारी नौकरियों में उनकी मौजूदगी के प्रतिशत को भी ध्यान में रखा जाए।
बृहस्पतिवार को सुमित कुमार शुक्ला और चार अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि पुलिस विभाग में यदि कोई चयन हो चुका है तो आरक्षित वर्ग की ऐसी नियुक्ति इस याचिका के अगले आदेशों पर निर्भर करेगी।
कोर्ट ने प्रदेश सरकार को छूट दी है कि वह आदेश में संशोधन, परिवर्तन या स्पष्टीकरण के लिए अर्जी दे सकती है। प्रदेश सरकार को इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए एक माह का समय दिया गया है। याचीगण को प्रति उत्तर दो सप्ताह में दाखिल करना होगा।
पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं बता सकी सरकार
याचिका पर वकील अग्निहोत्री त्रिपाठी और अनिल बिसेन ने 20 जून 2013 को जारी नागरिक पुलिस और पीएसी की 35,500 भर्तियों के विज्ञापन को चुनौती दी थी। इन पदों में 20806 पद अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित है।
दाखिल याचिका में कहा गया कि राज्य की सेवाओं में पिछड़ा वर्ग की तमाम जातियों का प्रतिनिधित्व काफी अधिक हो गया है। इसलिए इनको आरक्षण का लाभ जारी रखना असंवैधानिक है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के तहत पिछड़ा वर्ग को दिए जा रहे आरक्षण को चुनौती दी गई।
अदालत द्वारा कई बार मौका दिए जाने के बावजूद प्रदेश सरकार यह नहीं बता सकी कि किन पिछड़ी जातियों का सरकारी सेवा में कितना प्रतिनिधित्व है। प्रदेश सरकार की ओर से कहा गया कि जातियों की संख्या का आंकड़ा केंद्र सरकार को 2011 की जनगणना के आधार पर जारी करना है।