आज भारत का सबसे बड़ा “व्यंग्यकार” और खुद एक शानदार “व्यंग्य” लालू यादव जेल में है। मध्यमवर्ग तालिया पीट रहा है। लालू उसकी नजर में सबसे कुख्यात राजनेता थे। पैसा तो सभी खाते रहे हैं और खा भी रहे हैं। लालू यादव ने उस पिछड़े-गरीब-दलित वर्ग को पहली बार सत्ता का वह चेहरा दिया जो एक गरीब और पिछड़े का बेटा था। जो उसकी ही तरह जीता था, उसकी भाषा में बातें करता था और उसके बाजू में बैठ उसकी समस्याओं को सुनता था। धीरे-धीरे लालू भी समाजवाद को भूल सत्ता के रंग में रंगते गये और अपने कार्यकाल के मध्य में ही इस वर्ग का प्रतीक मात्र बन कर रह गये थे। याने चेहरा बस इस वर्ग का था और कार्यकलाप सामंतों वाले। पिछड़ों-दलित-गरीब वर्ग की सबसे बड़ी राजनैतिक जीत लालू यादव ही थे और उसकी सबसे बड़ी हार भी। लालू यादव मध्यम या उच्च वर्ग परिवार के होते तो ऐसा घोटाला शायद ही करते जिसमें जेल जाना पड़ जाये। ए राजा भी चेक से रिश्वत नहीं लेते। यह मध्यमवर्ग सफ़ाई से सारे काम करने की तहजीब सिखा देता है। लालू यादव के बेटे से ऐसी मूर्खता के बारे में सोचना भी बेवकूफ़ी होगी। इस देश में दलित-पिछड़ों को न्याय ऐसे नहीं दिलाया जा सकता।
परसाई ने लिखा था कि महिला स्वतंत्रता का स्वर्ण वाक्य है “एक की कमाई से घर नहीं चलता।” अगर डबल इनकम की चाह न होती तो आज भी इस मध्यमवर्ग की महिलाएं पर्दे में होती और बिना पर्दे के घूमने वाली महिलाओं के बलात्कार पर रोष नहीं उठता बल्की यह कहा जाता कि “ऐसे घूमने वालियों के साथ ऐसा ही होता है।”
भारत की जनता और खासकर यही आर्थिक रूप से सक्षम मध्यमवर्ग चंदे और सहयोग के रूप में किसी राजनैतिक दल को धेला भी नहीं देता। इनकी नजर में नेता और राजनैतिक दल का मतलब है कि लोग आएं और मुफ़्त में इनकी सेवा करें।
दरअसल दोष ब्राह्मण-ठाकुर जैसी जातियों का नहीं है भारत के मानसिक सिस्टम का है। यहा दलित का बेटा अफ़सर बनते ही अपने घर में यज्ञ और हवन करवाने लगता है। गरीब के दरवाजे पर आते ही वैसे ही नाक भौं सिकोड़ता है जैसे कभी उसके बाप को देख गांव का जमींदार नाक भौ सिकोड़ता था। उन्हीं महिलाओं के बलात्कार पर शोर उठता है जो इस मध्यम या उच्च वर्ग से आती हैं।
गरीब की बेटी बलात्कार से भी इंडिया गेट पर भीड़ नही जुटा सकती है। गरीब मुसलमान के बेटे को ही सच्चा मुसलमान बनाने के लिये मदरसों में झोंका जाता है। वे ही दंगों में लड़ने वाली भीड़ की अग्रिम पंक्ति होते हैं और मारे जाने वालों की सूची में भी अंग्रिम पंक्ति में।
किसी सैय्यद, अशरफ़ से पूछो तो अभी आपको इस्लाम की हजार खूबियां गिना देगा। हर इंसान को बराबरी का दर्जा देने वाला धर्म बतायेगा। लेकिन उसकी बेटी के लिये किसी दलित मुस्लिम बेटे का नाम सुझा दीजिये तो ठीक वैसे ही नाक भौं सिकोड़ने लगेगा जैसे मैंने इसके पहले बयान किया था।
लालू इस बात के भी प्रतीक हैं कि गरीब-पिछड़े की पीड़ा समझने और सहानुभूति पैदा करने वाला कोई आंदोलन इस देश में सुधार नहीं कर सकता। इस देश में गरीब-पिछड़ों के उद्धार का एक ही तरीका है कि निचले पायदान में खड़े वर्ग को आर्थिक और शैक्षिक रूप से सक्षम बनाने की योजनाएं चलाई जाएं। आरक्षण भी अब अपना असर खोने लगेगा। इससे दलितों के सरकारी पेशा मध्यमवर्ग की एक नई पीढ़ी खड़ी हो चुकी है। अब आरक्षण की सारी फ़सल वही काटने लगी है। डाइरेक्ट कैश ट्रांसफ़र जरूर एक नया कारगर हथियार आया है। इसके बिना सारी सरकारी योजनाएं यही मध्यम वर्ग रास्ते में डकार जाता है और भरे पेट से नारा लगाता है “मेरा नेता चोर है”, “लालू यादव को जेल भेजो”। यही मध्यम वर्ग जिसकी कोई जात नहीं है, धर्म नहीं है, समान रूप से बिना भेदभाव के सबको समाहित कर लेता है। जरूरत बस इसके दरवाजे तक पहुंच जाने की है और तब तक सिवाय टापते रहने के इस देश में कुछ मिलने वाला नहीं है।