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फिर हद हो गई: भारतीय क्रिकेट का काला सच, आखिर कब तक चलेगा ये?

 26_09_2013-Tambe26नई दिल्ली। हमारे देश का क्रिकेट फैन और क्रिकेट तंत्र आए दिन इस मुद्दे पर खींचतान में लगा रहता है कि सचिन कब संन्यास लेंगे, क्या उनकी विदाई देश में होगी या विदेश में और ना जाने क्या-क्या..लेकिन दूसरी तरफ कई हुनरमंद क्रिकेटर अपना पूरा जीवन घरेलू मैदान पर ही संघर्ष करते काट देता है लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। बुधवार को चैंपियंस लीग टी20 में भी एक ऐसा नजारा देखने को मिला जिसने रोंगटे खड़े कर दिए। इस मैच में एक खिलाड़ी ने बिना कुछ बोले, बिना अपना दर्द बयां किए एक ऐसी कहानी सामने रख दी जो हमारे क्रिकेट चयन प्रक्रिया व प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने की योजनाओं पर एक बार फिर तमाम सवाल उठा देता है।

बुधवार को जयपुर में चैंपियंस लीग के मैच में राजस्थान रॉयल्स के एक गेंदबाज, प्रवीण तांबे ने अपनी टीम को शानदार जीत दिलाई। तांबे ने 3 ओवर में महज 15 रन देकर 4 विकेट हासिल किए और लायंस की टीम को पूरी तरह से पस्त कर दिया। अब आपको बताते हैं प्रवीण तांबे की उम्र, जो कि 8 अक्टूबर को पूरे 42 वर्ष के हो जाएंगे। हैरत होती है कि इतने हुनरमंद गेंदबाज को इस उम्र में मौका मिल रहा है। इससे पहले इस खिलाड़ी ने आज तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी नहीं खेला है और अपने सभी महत्वपूर्ण साल वह महाराष्ट्र की एक छोटी से क्रिकेट लीग, कांगा लीग, ही खेलते रह गए। आज इतने सालों के संघर्ष के बाद दुनिया उन्हें देख पाई और उम्र के ऐसे पड़ाव पर देख पाई जहां शायद उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का कोई भविष्य नजर नहीं आता। राजस्थान रॉयल्स के कप्तान राहुल द्रविड़ भी इस मैच के बाद तांबे की दास्तां को बयां करे बिना नहीं रह सके। द्रविड़ ने कहा, ‘क्या शानदार कहानी (तांबे) है यह। एक ऐसा क्रिकेटर जिसे कभी फ‌र्स्ट क्लास क्रिकेट खेलने तक का मौका नहीं मिला, और इतने साल जो कांगा लीग में संघर्ष करता रहा, यह एक बेहतरीन कहानी है।’

तांबे तो महज एक अलार्म है कि हमारे देश की क्रिकेट प्रतिभा को आंकने वाले अधिकारी थोड़ा और जिम्मेदारी से काम करें वरना कितने हुनरमंद अपने करियर को ऐसे ही कुर्बान करने पर मजबूर हो जाएंगे, यूं तो दर्जनों क्रिकेटर संघर्ष में ही जीवन गुजार रहे हैं लेकिन हम आपको दो और ऐसे उद्हारण देते हैं जो कि इस बात को पुख्ता करते हैं कि अमीर और करोड़पति भारतीय क्रिकेट का सच कहीं ना कहीं कामयाबियों, दिग्गजों और हो-हल्ले के बीच कहीं गुम सा हो गया है। जाहिर है कि हर क्रिकेटर को चयनकर्ता मौका नहीं दे सकते, लेकिन कुछ खिलाड़ियों को टीम पर बोझ बनाते हुए, कुछ प्रतिभावान खिलाड़ियों के करियर को दांव पर लगाना कहां तक उचित है इसका फैसला आप खुद कर लें..

1. वसीम जाफर:

मुंबई में जन्में 35 वर्षीय वसीम जाफर को 2008 में आखिरी बार टेस्ट मैच खेलने का मौका दिया गया। उन्होंने 31 टेस्ट मैचों में 5 शानदार शतक (जिसमें दो दोहरे शतक भी शामिल हैं) और 11 अर्धशतक भी जड़े, वह भी पाकिस्तान, इंग्लैंड, वेस्टइंडीज और दक्षिण अफ्रीका जैसी टीमों के खिलाफ.. लेकिन कुछ मैचों में खराब प्रदर्शन के बाद उन्हें टीम से ऐसे नजरअंदाज किया गया कि वह आज तक अपनी वापसी को तरस रहे हैं, या यह कहें कि उम्मीद ही छोड़ चुके हैं। आमतौर पर एक खिलाड़ी को राष्ट्रीय टीम में आने के लिए खुद को घरेलू क्रिकेट में साबित करना होता है, तो चलिए आपको उनके घरेलू क्रिकेट के आंकड़े भी बता देते हैं, फैसला आप खुद कर लीजिएगा कि एक प्रतिभा को कैसे बूढ़ा होने के लिए छोड़ दिया गया है। जाफर रणजी क्रिकेट में अब तक के सर्वाधिक 9155 रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं। वह 32 शतक लगाकर इस टूर्नामेंट में सर्वाधिक शतक जड़ने वाले खिलाड़ी भी हैं। पिछले रणजी सीजन में भी मुंबई को चैंपियन बनाने में उनका अहम योगदान रहा लेकिन उसके बावजूद अब तक उन्हें टीम में मौका नहीं दिया गया।

2. अमोल मजूमदार:

आंध्र प्रदेश के लिए घरेलू क्रिकेट खेलने वाले अमोल मजूमदार इस नवंबर 39 वर्ष के हो जाएंगे। अमोल सचिन तेंदुलकर के स्कूल के साथी रहे हैं और उन्हीं की स्कूल टीम में साथ करियर की शुरुआत की थी, दोनों के कोच (रमाकांत आचरेकर) भी एक ही थे। तकरीबन 21 साल से अमोल प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेल रहे हैं, 1993 के रणजी सीजन में अमोल ने अपने डेब्यू पर 260 रन मारकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था, जो कि आज तक कायम है, रणजी में सर्वाधिक रन बनाने के मामले में वह 9105 रन बनाकर दूसरे नंबर पर हैं, रणजी में उनके नाम 28 शतक हैं, प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनके नाम 11,070 रन हैं, जिस दौरान उन्होंने 30 शतक भी जड़े, लेकिन इतने बेहतरीन रिकॉ‌र्ड्स के बावजूद आज तक इस खिलाड़ी को भारतीय क्रिकेट टीम में एक मौका तक नहीं दिया गया

NCR Khabar News Desk

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