एक ओर भारत का चालू वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, दूसरी तरफ रुपया गिर रहा है। इन परिस्थितियों में भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री वीरप्पा मोइली ने मनमोहन सिंह को सुझाव दिया है कि भारत ईरान से कच्चे तेल का आयात करे।
पेट्रोलियम मंत्री का मानना है कि इससे भारत साढ़े आठ अरब विदेशी मुद्रा बचा सकता है।
सवाल यह है कि भारत ने जिस ईरान से सालों से दूरी बना रखी है, क्या वह इस बात के लिए तैयार होगा? अगर होगा, तो क्या इससे समस्या हल होगी? इसी संदर्भ में बीबीसी संवाददाता रूपा झा ने मशहूर तेल विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा से बात की।
ईरान भारत को संकट से निकाल लेगा?
कहना मुश्किल है कि ईरान भारत को बचाने की स्थिति में है, या नहीं।
भारत पूरा प्रयास कर रहा है कि वह तेल आयात की कीमत डॉलर में अदा करे। अगर ईरान इसके लिए तैयार हो जाता है, तो थोड़ी मदद मिल सकती है।
इसके बाद देखना होगा कि उस तेल को भारत कैसे लाया जाए क्योंकि ईरान के साथ दो तरह की समस्याएं आ रही हैं। पहली समस्या भुगतान की है। इसका समाधान इस रूप में निकालने की कोशिश हो रही है कि 40 फीसदी भुगतान रुपए में हो।
अगर थोड़ा और प्रयास किया जाए तो यह बढ़कर 60 से 65 फीसदी हो सकता है। इससे भारत को थोड़ी राहत मिल जाएगी।
तेल को भारत लाने में दिक्कत यह है कि टैंकर, जिन्हें वीएलसीसी (वेरी लार्ज क्रूड करियर) कहा जाता है, उनके बीमे के लिए पश्चिम की कोई कंपनी तैयार नहीं है।
जब संमदर में एक बड़ा जहाज आता है, तो उसका बीमा ज्यादातर पश्चिमी कंपनियां ही करती हैं। ऐसे में सवाल है कि जोखिम कौन उठाएगा। ईरान या भारत?
जहाज के साथ कोई दुर्घटना पेश आने पर बीमे की रकम इतनी बड़ी हो सकती है कि भारत की कंपनियों को भुगतान करने में परेशानी होगी और ईरान की कंपनियां तो भुगतान करने की स्थिति में हैं ही नहीं।
इन हालात में राहत तो नहीं मिलेगी, मगर ईरान से आने वाले तेल की मात्रा में जो कमी हुई है, उसे थोड़ा बढ़ाया जा सकता है। इससे भारत के तेल आयात खर्च में पांच से आठ फ़ीसदी का ही फ़र्क पड़ेगा। इससे ज़्यादा नहीं।
आयात का कितना फ़ीसदी हिस्सा सस्ता होगा?
यदि ईरान तेल आयात के लिए तैयार हो जाए और तेल के भारत पहुंचने में भी कोई दिक्कत न हो, तो भारत को कोई बड़ी राहत नहीं मिलने वाली।
भारत ईरान से पहले-पहल 20 फ़ीसदी तेल आयात करता था। यह घटकर 12 फ़ीसदी हुआ, फिर नौ और अब सात फ़ीसदी से भी नीचे जा चुका है। अगर यह प्रतिशत और पांच फ़ीसदी बढ़ा दी जाए तो भी यह आंकड़ा 12 तक ही पहुंचेगा।
भारत अपनी ज़रूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है। ऐसे में अगर ईरान से आयात वापस 12 फीसदी तक बढ़ भी जाए तो इससे फ़र्क तो पड़ेगा, मगर इतना नहीं कि हमारा अर्थशास्त्र बदल जाए या आयात के समीकरण सही हो जाएं।
क्या ईरान से तेल आयात करके 8.5 अरब डॉलर बचाए जा सकते हैं?
सरकार का जो कहना है कि ईरान से तेल मंगवाने से 8.5 अरब डॉलर बचाया जा सकता है, यह बचत तभी होगी जब समुद्री जहाज़ उपलब्ध हों। बीमे की समस्या का समाधान हो।
सबसे ज़रूरी है कि कोई जहाज ईरान से भारत तेल लाने को तैयार हो क्योंकि अधिकांश विदेशी जहाज ईरान से भारत तेल लाने के लिए तैयार नहीं होते।
विदेशी जहाज़ क्यों तेल नहीं लाना चाहते भारत?
ईरान पर प्रतिबंध हैं। कोई भी समुद्री जहाज, जो ईरान जाएगा, खासकर पश्चिमी जहाज, उसे पकड़ लिया जाएगा। इसलिए यह काम या तो भारत का जहाज़ कर सकता है या ईरान का।
भारत और ईरान की समुद्री जहाज़ की एक संयुक्त कंपनी भी है – ‘ईरान-हिंद शिपिंग कॉरपोरेशन’। मगर पर्याप्त कारोबर न होने के कारण उसे बंद कर दिया गया है।
भारत 167 अरब डॉलर का तेल आयात करता है। अब यदि जहाज़ मिल जाए और आयात करने से पांच अरब डॉलर की राहत मिल जाए तो पहली बात तो यह है कि इन सबमें एक साल लग जाएगा।
तेल की कीमतें जिस हिसाब से बढ़ रही हैं, उससे एक साल में हमारा तेल आयात बिल बढ़कर 167 से 175 बिलियन डॉलर हो जाएगा। ऐसे में अगर छह-सात अरब डॉलर की राहत मिली भी, तो कीमत बढ़ने से भी असर वही ‘ढाक के तीन पात’ होने हैं।
तो सरकार ऐसी कोशिश में क्यों?
भारत सरकार ने पिछले तीन साल में तेल से जुड़ी आयात नीति और कीमत निर्धारण नीति के बीच काफी असंतुलन पैदा कर दिया है।
हालात ये हैं कि सरकार को कुछ नहीं सूझ रहा। मुझे लगता है कि सरकार कहीं न कहीं घबरा गई है और जब ऐसा होता है तो विवेक के आधार पर फैसले नहीं होते।
सरकार लोगों को बस यह संदेश देना चाहती है कि घबराने की ज़रूरत नहीं, ईरान हमारी मदद करेगा।
हमें याद रखने की ज़रूरत है कि यह वही ईरान है जिससे भारत ने कभी कहा था कि हम तेल नहीं लेंगे। भारत ने कभी यह भी कहा था कि हम ईरान से पाइपलाइन नहीं बनवाएंगे। भारत ने ईरान से कारोबारी रिश्ता रखने से भी इनकार कर दिया था।
अब भारत ने तो अपनी ज़रूरत के हिसाब से अपनी नीति बदल ली, क्या ईरान उसी हिसाब से अपनी नीति बदलेगा, यह देखना होगा।
ईरान से पुराने तेल संबंध फिर बनाना कितना मुश्किल?
भारत में ईरान को एक बहुत मुश्किल ग्राहक माना जाता है। ईरान काफी होशियार देश है। वहां के तेल प्रतिष्ठान बेहद स्मार्ट हैं। भारत से उनके पुराने संबंध हैं। हम भारी मात्रा में उनसे तेल मंगवाते रहे हैं।
भारत में दो रिफाइनरी ऐसी हैं, जिन्हें बनाया ही इसीलिए गया कि वे ईरान का तेल रिफाइन करेंगी। इसमें ओएनजीसी नियंत्रित सरकार की मंगलोर रिफाइनरी भी है।
ईरान और भारत के बीच कभी बेहद घनिष्ठ संबंध रहे हैं, बिलकुल पति पत्नी की तरह। बाद में उस रिश्ते में खटास आ गई। खटास आने का कारण था पश्चिम देशों के ईरान पर प्रतिबंध। भारत ने उस दबाव को काफी हद तक माना। फिर भारत ने तेल और गैस के मामले में ईरान से खुद को थोड़ा दूर कर लिया।
इस तरह हमारे बीच दूरियां बढ़ गईं। ईरान के तेल और गैस क्षेत्र में भारत की ओर से निवेश होने चाहिए थे, वे नहीं हुए। पाइपलाइन में भी भारत पहले जैसा जोश नहीं दिखा रहा क्योंकि उस पर पश्चिम देशों का दबाव है। खासतौर से अमेरिका का।
पिछले तीन साल में भारत ने ईरान के साथ दूरी की नीति अपनाई। अब भारत चाहता है कि ये दूरियां रातों-रात दूर हो जाएं क्योंकि तेल महंगा हो गया है। अर्थव्यवस्था डगमगाने लगी।
हो सकता है ईरान थोड़ा जोश दिखाए क्योंकि उसे भी भारत की उतनी ही ज़रूरत है, जितनी भारत को। जो खटास आई थी उसे दूर होने में समय लगेगा।