भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर पर खतरा मंडरा है। यह खतरा मंदाकिनी नदी के साथ-साथ ग्लेशियर और गांधी सरोवर के मलबे से है।
समय रहते यहां बह रही नदियों के प्रवाह को मोड़ने के उपाय नहीं किए गए तो मंदिर में पुन: पानी घुस सकता है।
विस्तृत सर्वेक्षण कराने की सलाह
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने भी राज्य सरकार को वैज्ञानिकों से ग्लेशियर और भूगर्भीय स्थिति का विस्तृत सर्वेक्षण कराने की सलाह दी है।
सुरक्षात्मक उपाय की जरूरत
एएसआई का कहना है कि जल्द से जल्द सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए ताकि एतिहासिक धरोहर को कोई आंच नहीं आए।
मालूम हो कि 16/17 जून को भारी बारिश और ग्लेशियर टूटने से केदारनाथ मंदिर से करीब ढाई किलोमीटर ऊपर गांधी सरोवर (चोराबाड़ी तालाब) टूट गया था।
मलबा मंदिर परिसर में जमा
इससे पानी के साथ-साथ भारी मात्रा में बोल्डर और मलबा मंदिर परिसर में जमा हो गया। बोल्डरों ने मंदिर के पिछले हिस्से को भी नुकसान पहुंचाया था। बाढ़ के कारण मंदाकिनी का प्रवाह क्षेत्र बदल गया है।
पहले मंदाकिनी सीधे नीचे की ओर बहते हुए मंदिर के दाहिनी ओर से निकल जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है। अब नदी मंदिर से लगभग 200 मीटर पीछे से घूमकर बायीं ओर बह रही है, इससे मंदिर को खतरा बना हुआ है।
मंदिर में पहुंच रहा पानी
मंदिर से करीब तीन किलोमीटर ऊपर तक बोल्डर जमा हैं जो जल स्तर बढ़ने पर पानी के प्रवाह को रोक सकते हैं। हफ्ते भर पहले ही भारी बारिश से नदी का पानी मंदिर के करीब 100 मीटर पीछे पहुंच गया था।
ग्लेशियरों से भी खतरा बना हुआ है। है। ग्लेशियरों के चटकने की आवाज अकसर सुनाई देती है। यह ग्लेशियर भी मंदिर की पिछली ओर की चोटियों में हैं।
जल्द करें ट्रीटमेंट वर्क: डा. फोनिया
आपदा कभी भी आ सकती है। अब पहले की तुलना में खतरा बढ़ गया है। आगे की सोचनी होगी। राज्य सरकार को सलाह दी गई है कि समय पर हाईड्रोलॉजी, मेट्रोलॉजिकल और जियोलॉजिकल सर्वे कराए।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजिकल सर्वे, जीएसआई की टीम मौसम और भूगर्भीय सर्वेक्षण कर रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी से भी अध्ययन कराया जाना चाहिए।
नदी के रुख को मोड़ने और ग्लेशियरों से बचाव के लिए सर्वेक्षण रिपोर्टों के आधार पर ट्रीटमेंट वर्क होना चाहिए।
– डा. रामनाथ सिंह फोनिया, निदेशक केदारनाथ संरक्षण योजना/भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली