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सामने आया दंगे में मारे गए लोगों के आंकड़ों में बड़ा ‘खेल’

muzaffarnagar-violence-5230ce8110655_exlमुजफ्फरनगर हिंसा में मारे गए लोगों के आंकड़ों में बड़ा खेल सामने आया है। 12 शवों को अपराध से जोड़कर उन्हें अलग किए जाने की माथापच्ची चल रही है।

हैरत की बात तो यह है कि इनमें से अधिकांश शव दंगा प्रभावित इलाकों से बरामद हुए हैं। मिसिंग के सच को प्रशासन स्वीकार करने से कतराता रहा है। सवाल उठता है कि पहले से कटघरे में खड़ा अमला यह सब करके क्या संदेश देना चाहता है?

मुजफ्फरनगर की हिंसा से दिल्ली और लखनऊ की सरकार दहली है। सरकार के साथ हर किसी की निगाहें टिकी हैं। पुलिस-प्रशासन की लंबी चौड़ी फौज मृतकों की संख्या को लेकर अपडेट नहीं है।

तीन दिनों से लगातार मौतों को लेकर अफसर तक एक राय नहीं हैं। डीएम, एडीजी और शासन मौतों को लेकर अलग-अलग आंकड़ा बताता रहा है।

मुजफ्फरनगर और शामली में मौतों को लेकर बड़ा घालमेल किया गया है। अब तक दोनों जिलों का आंकड़ा अलग रहा है। बुधवार को अचानक दोनों जिलों में 38 मौतों की पुष्टि कर दी गई है।

तर्क दिया गया है कि मुख्यालय पर दोनों जिलों के 50 शवों का बुधवार शाम तक पोस्टमार्टम किया गया है। इनमें से 12 शव हिंसा से अलग कर दिए गए। कहा गया है कि प्रथम दृष्टया प्रतीत हो रहा है कि यह लोग आपराधिक वारदात का शिकार हुए हैं।

अकेले मुजफ्फरनगर में मौत का आंकड़ा 44 तक पहुंच गया है। अफसर पहले दिन से ही किसी के लापता होने से इंकार करते रहे हैं। बावजूद इसके लापता तीन लोगों में से दो सोहनबीर और अजयवीर सिंह के शव मिल गए हैं।

बसेड़ा का ब्रजपाल, दाह खेड़ी का नजीर, सहारनपुर के गंगोह निवासी मुहम्मद शाहिद भी बुढ़ाना क्षेत्र से गायब हैं।

जांच पड़ताल का हिस्सा
एडीजी अरुण कुमार का कहना है कि 12 शवों का अभी हिंसा से सीधा जुड़ाव नहीं मिला है। मुजफ्फरनगर और शामली में होने वाली अपराधिक वारदातें किसी से छिपी नहीं हैं।

प्रथम दृष्टया ऐसा लग रहा है कि उनके साथ अपराधिक वारदात हुई है। फिर भी जांच पड़ताल का काम चल रहा है। जल्द पूरी तस्वीर साफ हो जाएगी।

NCR Khabar News Desk

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