नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले अपनी बहुप्रचारित व सर्वाधिक महत्वाकांक्षी योजना आधार की खुद बुनियाद हिला दी है। उसने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआइ) द्वारा जारी किए जा रहे आधार कार्ड हासिल करना वैकल्पिक है। उसने सभी नागरिकों के पास इसका होना अनिवार्य नहीं किया है। वर्ष 2009 में बड़ी तामझाम के साथ देश के तमाम नागरिकों को विशिष्ट पहचान पत्र मुहैया कराने के लिए शुरू किए गए आधार कार्ड की अनिवार्यता समाप्त हो गई है। करीब 30 अरब रुपये की इस योजना को चुनौती देने वालों ने इसे संविधान प्रदत्त बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन बताया है। इस पर केंद्र सरकार ने खुद इसकी अनिवार्यता से पल्ला झाड़ लिया है।
कुछ राज्य सरकारों ने वेतन, भविष्य निधि भुगतान, विवाह पंजीयन और संपत्ति के निबंधन जैसे बहुत सारे कामों के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने का निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट इनके खिलाफ दायर याचिकाओं की एक साथ सुनवाई कर रहा है। शीर्ष अदालत ने केंद्र को कहा कि अवैध रूप से देश में रहने वालों को आधार कार्ड जारी नहीं करें क्योंकि इससे उनके भारत में रहने को वैधता मिल जाएगी।
केंद्र सरकार ने कहा है कि आधार कार्ड के लिए किसी व्यक्ति की सहमति अनिवार्य है। इसकी शुरुआत समाज के वंचित तबके के समावेशन को बढ़ावा देने और उनके लाभ के लिए किया गया है, जिनके पास औपचारिक तौर पर पहचान का कोई प्रमाण नहीं है। यूआइडीएआइ और केंद्र के वकीलों ने याचिकाकर्ताओं के दलीलों का जवाब दिया। इन्होंने कहा कि भारत में आधार कार्ड स्वेच्छिक है। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और एसए बाबडे की पीठ के समक्ष संक्षिप्त सुनवाई के दौरान बताया गया कि इस सचाई के बावजूद कि आधार कार्ड प्रकृति से स्वेच्छिक है, बांबे हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार की ओर से राज्य सरकार के एक आदेश का अनुसरण करते हुए एक आदेश जारी किया गया है कि यह न्यायाधीशों और कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए जरूरी होगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल दीवान ने कर्नाटक हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी के लिए बहस करते हुए कहा ‘यह योजना संविधान के अचुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन और स्वाधीनता का अधिकार) में दिए गए बुनियादी अधिकारों का पूरी तरह से उल्लंघन है। सरकार दावा करती है कि यह योजना स्वच्च्छिक है लेकिन ऐसा नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कहा है कि यदि आधार कार्ड नहीं रहने पर किसी भी शादी का पंजीयन नहीं होगा। जस्टिस पुट्टास्वामी ने भी अपनी लोकहित याचिका में इस योजना के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की है।
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि इस परियोजना पर सरकार अब तक अरबों रुपये फूंक चुकी है। यूआइडीएआइ के अध्यक्ष नंदन नीलेकणी की उपलब्धियों के पुरस्कार स्वरूप कांग्रेस पार्टी उन्हें सांसद के लिए टिकट भी पक्का कर रखा है।