यहां शुक्रवार को शुरू हुए कार्डियोलॉजी कांफ्रेंस में आए डॉ. हरियावाला ने बताया कि अमेरिकी हृदय रोगियों पर यह थेरेपी बेहद कारगर साबित हुई है। भारतीय मरीजों की धमनियां अमेरिकी और यूरोपीय लोगों के मुकाबले संकरी होती हैं, इसलिए बाईपास सर्जरी करना पहले ही मुश्किल भरा होता है।
यह थेरेपी भारतीय हृदय रोगियों पर कहीं ज्यादा कारगर होगी क्योंकि उनकी दोबारा बाईपास सर्जरी और भी जोखिम भरा काम है। फिजिक्स के प्रेशर सिद्धांत पर आधारित यह थेरेपी डायबिटिक और गैंगरीन के मरीजों पर भी कारगर है।
यह शरीर के उन हिस्सों में खून पहुंचा देती है, जहां यह नहीं पहुंच पा रहा हो। 45 मिनट में इस थेरेपी से मरीज को आराम मिल जाता है। उन्होंने बताया कि यह थेरेपी देने वाली एकमात्र मशीन हाल ही में मुंबई के एक अस्पताल में लगाई गई है। उसके चिकित्सकों को भी यहीं बुलाया गया है। उन्हें भी यहां जुटे अन्य हृदयरोग विशेषज्ञों के साथ ही शनिवार को इसकी विस्तृत जानकारी दी जाएगी।
मशीन बनाने वाले डॉक्टर भी आए
स्विस कंपनी स्टोर्ज की मॉड्यूलिथ एसएलसी मशीन का ईजाद करने वाले चिकित्सक डॉ. मार्लिनगोश भी कांफ्रेंस में आए हैं। मशीन का शनिवार को प्रदर्शन होगा। भारत में हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर डॉ. मार्लिनगोश को उम्मीद है कि एंजियोप्लास्टी, बाईपास सर्जरी आदि के मुकाबले यह थेरेपी ज्यादा कारगर और सस्ती साबित होगी।
भारत में हेल्थ केयर पालिसी में नौकरशाही के रोड़े
अमेरिका में हेल्थ केयर पालिसी तय कराने वाले डॉ. मुकेश हरियावाला ने भारत में भी इसी तरह की पालिसी लागू कराने को प्रयासरत हैं। इसके तहत वहां हर नागरिक का बीमा होता, इलाज का खर्च मरीज को नहीं उठाना पड़ता लेकिन भारत में नौकरशाही ऐसी योजना में रोड़े अटकाती है।
अमेरिका के मुकाबले भारत में ऐसी हेल्थ पालिसी की ज्यादा जरूरी है लेकिन उनकी कोशिशें अभी सफल नहीं हो पाई हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ उनकी बातचीत चल रही है। इसलिए वह नाउम्मीद भी नहीं हैं।