अमेरिकी फेडरल रिजर्व के राहत भरे फैसले ने उद्योग, बैंकिंग और कारोबार जगत में उम्मीद जगा दी है कि अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर रघुराम राजन भी शुक्रवार को अपनी पहली मौद्रिक समीक्षा में राहत की कुछ फुहारें बरसा सकते हैं।
बांडों की खरीद में कोई कटौती न करने के फेड के फैसले ने रुपए में गिरावट की चिंता से फिलहाल राहत देते हुए राजन के लिए इस ओर कदम बढ़ाने का रास्ता खोला है।
हालांकि ऊंचे स्तर पर कायम महंगाई मौद्रिक नरमी की राह में रोड़े अटका सकती है। ऐसे में रेपो रेट में कटौती जैसी ठोस राहत दे पाना फिलहाल राजन के लिए मुश्किल होगा।
अर्थशास्त्रियों और विश्लेषकों का मानना है कि आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के फैसले का व्यापक असर देखने को मिल सकता है।
सूत्रों के मुताबिक पहले 18 सितंबर को पेश की जाने वाली मौद्रिक समीक्षा को फेड रिजर्व के फैसले के मद्देनजर ही दो दिन के लिए टाल कर 20 सितंबर को पेश करने का फैसला किया गया।
सूत्रों यह भी बताते हैं कि मंगलवार को वित्त मंत्रालय के साथ आरबीआई गवर्नर की बैठक में फेड रिजर्व के संभावित कदमों की काट खोजने पर लंबी चर्चा हुई थी।
बैठक में चिंता जताई गई थी कि फेड अगर बांड खरीद बंद करता है, तो विदेशी निवेशकों द्वारा भारत जैसे विकासशील देशों से पैसा बाहर निकालने की प्रक्रिया तेज हो जाएगी।
इसका नकारात्मक असर सिर्फ रुपए पर ही नहीं, बल्कि शेयर बाजार, बांड, म्युचुअल फंड व कच्चे तेल के दामों पर भी पड़ेगा। फेड के फैसले ने फिलहाल इस चिंता को खत्म कर दिया है।
वैसे भी राजन के गवर्नर बनने के बाद से रुपए में नौ फीसदी की मजबूती आई है। ऐसे में रुपए की मजबूती के लिए किए गए उपायों में से कुछ के वापस लिए जाने की संभावना है, ताकि निवेश में बढ़ोतरी हो सके और पूंजी प्रवाह बढे़।
दूसरी ओर महंगाई अब भी आरबीआई के लिए एक सिरदर्द बनी हुई है। ऐसे में अर्थशास्त्रियों का मानना है कि राजन महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कठोर मौद्रिक उपाय कर सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि महंगाई बढ़ने के साथ ही एक दशक के निचले स्तर पर चल रही आर्थिक विकास दर (इकोनॉमिक ग्रोथ) को बढ़ावा देने राजन महंगाई और ग्रोथ के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते हुए कुछ ऐसे उपाय कर सकते हैं, जिससे महंगाई बढ़ने के दबाव के बगैर अर्थव्यवस्था को गति मिल सके और रुपए में स्थिरता आए।
हालांकि यह अभी यह कह पाना मुश्किल है कि वह मौद्रिक नीति में महंगाई और ग्रोथ में से किसको ज्यादा तवज्जो देंगे।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राजन केंद्रीय बैंक की नीतियों को तय करने के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई के बजाय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा महंगाई को आधार बना सकते हैं। ऐसा करके वह भारत की मौद्रिक नीति को विकसित देशों की नीतियों की राह पर बढ़ा सकते हैं।
हालांकि खुदरा महंगाई भी अगस्त में 9.52 फीसदी के ऊंचे पर रहने के चलते इसको नियंत्रित करने के लिए उन्हें फिलहाल कठोर मौद्रिक नीति अपनानी पड़ सकती है।
ऐसे में आसार इस बात के ही ज्यादा हैं कि रेपो रेट में फिलहाल कोई बदलाव न करते हुए इसे 7.25 फीसदी पर बनाए रखा जाए।
अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि बैंकों को राहत देने के लिए राजन मार्जिनल स्टैंडिग फैसिलिटी (एमएसएफ) में भी कोई बदलाव नहीं कर पाएंगे और यह रेपो दर से तीन प्रतिशत ऊपर बनी रह सकती है।
आमतौर पर यह रेपो दर से दो प्रतिशत अधिक होती थी, लेकिन जुलाई में रिजर्व बैंक ने इसे दो फीसदी बढ़ाकर 10.25 फीसदी कर दिया था।
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि राजन ऐसा कोई भी संकेत नहीं देना चाहेंगे कि वह आगे नीतिगत दरो में और कमी करने वाले है या वह एमएसएफ को घटाकर 7.25 फीसदी की ओर ले जाने वाले हैं।