भारतराजनीति

मोदी Vs राहुलः बोल बचन में कौन आगे, कौन पीछे?

modi-523aee67dbf4e_exlकोई कितना भी इनकार करें, लेकिन भाजपा के ‘नए पीएम’ नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी सीधे मुकाबले की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।

लेकिन अपने शब्दों से दिल जीतने के मामले में इनमें से कौन बढ़िया खिलाड़ी है, यह जानना दिलचस्प है।

चुनावी त्योहार की तैयारियों में जुटी कांग्रेस और भाजपा, दोनों को इस बात का इल्म है कि इस वक्‍त जरा सी चूक काफी महंगी पड़ सकती है।

चुनावी रैलियों, जनसभाओं में दिए जाने वाले भाषणों और बयानों पर खास ध्यान दिया जा रहा है। हर एक लफ्ज से वोटर के दिल में उतरने और विरोधी को उसके दिलो-दिमाग से बाहर धकेलने की पुरजोर कोशिश चल रही है।

दो नेता, असंख्य उम्मीदें
चुनावों की बिसात पहले ही बिछ चुकी थी, लेकिन पहला मोहरा चला सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के ख्वाब संजो रही भाजपा ने।

पार्टी के भीतर जारी मतभेदों और बाहर से होने वाले हमलों की आशंका को दरकिनार करते हुए पार्टी ने नरेंद्र मोदी को पीएम पद का दावेदार घोषित कर दिया।

दूसरी तरफ कांग्रेस उम्मीद लगा रही है कि सोनिया गांधी की तरह राहुल का करिश्मा भी काम करेगा और वह एक बार फिर उन्हें पावर गैलरी तक पहुंचाने में कामयाब साबित होंगे।

चुनावी रैलियां शबाब पर हैं। कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी कमान संभाल रहे हैं। आइए गौर करें कि चुनावी जंग में बड़े मुद्दों पर ये दोनों क्या राय रखते हैं और क्या रणनीति अपना रहे हैं?

गरीब-अमीर
यह राहुल गांधी का पसंदीदा विषय है। उन्होंने शुरुआत में अपने राजनीतिक गुरुकुल के तौर पर गरीबों की झोपड़ी को ही चुना था। राजस्‍थान में हाल में हुई दोनों रैलियों में भी कांग्रेस युवराज ने गरीबी और गरीबों की बात प्रमुखता से उठाई।

इशारों-इशारों में उन्होंने मोदी पर भी हमला बोला और ढाल बनाया गरीबों को। उन्होंने कहा कि विरोधी सिर्फ चमकती गाड़ियों पर ध्यान देते हैं, लेकिन कांग्रेस गरीबों पर गौर करती है।

दूसरी ओर मोदी गरीबी पर कम ही बोलते हैं। दरअसल, उनकी राजनीति लोगों की महत्वाकांक्षा पर आधारित है। वह गरीबी का कम से कम जिक्र करते हैं और विकास की बड़ी-बड़ी बातों पर जोर देते हैं।

मोदी का फोकस इस बात पर रहता है कि विकास की चर्चा ज्यादा की जाए और गरीबी से लेकर हर बड़ी समस्या का हल उन्हें डेवलपमेंट में नजर आता है।

कैसा विकास?
राहुल गांधी का विकास मॉडल कुछ अलग है। उन्हें सरकारी कार्यक्रमों के जरिए होने वाला विकास ही असल विकास दिखता है। औद्योगिक विकास का कभी जिक्र करते हैं, तो भी गरीबों की हिस्सेदारी को ध्यान में रखकर।

कांग्रेस उपाध्यक्ष का मानना है नरेगा और खाद्य बिल के जरिए होने वाला विकास ही गरीबों के लिए फायदेमंद है और भाजपा विकास के जो ख्वाब उन्हें दिखा रही है, वह सिर्फ लफ्फाजी है।

मोदी की बात करें, तो विकास उनकी रीढ़ का काम करता है। गुजरात दंगों से सनी छवि को धोने के लिए उन्होंने इसी साबुन का सहारा लिया था और पीएम दावेदार बनने के बाद भी उनका सारा जोर ‌इसी पर है।

वह गुजरात को मॉडल राज्य के रूप में पेश करते हैं और अब ख्वाब दिखा रहे हैं कि गुजरात की तरह देश को भी विकास की पटरी पर ला देंगे। यह चुनाव बताएंगे कि उनकी यह दलील मतदाताओं को पचती है या नहीं।

सेकुलर बनाम सांप्रदायिकता
राहुल गांधी इस मामले में काफी मुखर हैं। वजह भी है। उनकी पार्टी कांग्रेस की राजनीति और विचारधारा, दोनों ही सेकुलरवाद की दीवारों पर खड़ी है। और भाजपा पर हमला बोलने के लिए यह सबसे तीखा हथियार है।

अपने हालिया भाषणों में भी राहुल बाबा ने इस चीज को रेखांकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस ऐसा विकास चाहती है, जिसमें किसी के साथ भेदभाव न बरता जाए।

नरेंद्र मोदी की यह दुखती रग है। जब भी कोई भाजपा और उन्हें शिकस्त देने के लिए सांप्रदायिकता का कार्ड खेलता है, तो मोदी को जवाब देने में कुछ मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

मोदी के लिए यह मामला इतना संजीदा है कि उन्हें अपनी रैलियों में मुस्लिमों को न केवल बुलाना पड़ता है, बल्कि उन्हें मुस्लिम जैसा दिखाना भी पड़ता है।

राष्ट्रवाद या हिंदूवाद?
कांग्रेस उपाध्यक्ष इस मामले में कुछ कमजोर दिखते हैं। जिस तरह सांप्रदायिकता का मुद्दा मोदी की दुखती रग है, ठीक उसी तरह राष्ट्रवाद का मामला राहुल का स्कोरिंग प्वाइंट शुरुआत से नहीं रहा।

खास बात यह है कि भाजपा राष्ट्रवाद को हमेशा सबसे बड़ा मुद्दा बनाती है और राहुल विरोधियों पर हमला बोलते हुए इस मामले को नहीं छूते, क्योंकि इसे लेकर भाजपा को काउंटर करने के लिए उनके पास कोई दलील नहीं है।

मोदी का यह पसंदीदा विषय है। आरएसएस की ट्रेनिंग और भाजपा में कई साल कामकाज, ऐसे में राष्ट्रवाद के मुद्दे पर उनकी पकड़ भाषण के हर वाक्य में दिखती है।

पीएम दावेदार की ताजपोशी से पहले भी वह राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाते थे, लेकिन दावेदार बनने के बाद पहली रैली में उन्होंने पाकिस्तान को निशाने पर लिया। संकेत साफ हैं। वह राष्ट्रवाद के हथियार को धार देना जारी रखे हैं।

गरीब तबका बनाम मध्य वर्ग
राजनीति में उतरे राहुल को कई साल गुजर चुके हैं, लेकिन शुरुआत से ही उनका फोकस गरीबों पर रहा है। जाहिर है, भाषण देते वक्‍त वे ऑडियंस के रूप में भी गरीबों को ही देखते हैं।

राजस्‍थान में हुई रैलियों में भी उनका ध्यान इसी पर रहा। उन्होंने कहा‌ कांग्रेस ने अब नया नारा दिया है। नारा है, तीन-चार रोटी खाएंगे और कांग्रेस को लाएंगे। देखना बाकी है कि गरीब उनकी बात कितनी सुनते हैं।

दूसरी ओर ‘विकास-पुरुष’ की छवि गढ़ने की कोशिशों में जुटे नरेंद्र मोदी हैं, जिनके फोकस में मध्य वर्ग और उच्च-मध्य वर्ग रहता है। वे हमेशा बड़ा सोचने की बात कहते हैं और विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने का नारा देते हैं।

मोदी का कहना है कि उन्होंने गुजरात में लोगों को गरीबी की अंधेरे गलियारों से निकालकर विकास के उजाले तक पहुंचाया है और वह पीएम बनने के बाद देशवासियों के लिए भी कुछ ऐसा ही करेंगे।

NCR Khabar News Desk

एनसीआर खबर.कॉम दिल्ली एनसीआर का प्रतिष्ठित और नं.1 हिंदी समाचार वेब साइट है। एनसीआर खबर.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय,सुझाव और ख़बरें हमें mynews@ncrkhabar.com पर भेज सकते हैं या 09654531723 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं

Related Articles

Back to top button