मुजफ्फरनगर जिले में भड़की सांप्रदायिक हिंसा कई परिवारों को कभी न भरने वाला जख्म दे गई। पीड़ितों की आंखों में अभी भी हिंसा का खौफनाक मंजर है। फुगाना के छह गांवों के हजारों लोगों ने पलायन कर अन्य गांवों में पनाह ले रखी है। तावली में पनाह लेने वाले खरड़ निवासी किसी कीमत पर अब अपने गांव लौटना नहीं चाहते हैं। जिले में सबसे अधिक हिंसा फुगाना थाना क्षेत्र में हुई।
मुजफ्फरनगर [रवि प्रकाश तिवारी]। ‘हम नफरत की भाषा नहीं जानते, आपस में अमन-चैन से रहते हैं। मैं गांव में निकाह के बाद डोली में आई थी, अब चाहे दंगा हो या कुछ और मैं पलायन नहीं करूंगी। मर जाऊंगी, भागूंगी नहीं। यहां से तो बस मेरा जनाजा ही निकलेगा।’ दुल्हैड़ा की 75 वर्षीय जन्नो अकेली अल्पसंख्यक है, जो गांव में बची है। जन्नो कहती हैं कि यहां मेरा घर है और आस-पड़ोसी सम्मान देते हैं। दंगे का हम पर क्या असर। मैं हर रोज की तरह खाना बनाती हूं, खाती हूं, अपने पशुओं को खिलाती हूं। हां, रात में कोई अनहोनी न हो इसकी खातिर भतीजे समान कविंद्र के घर सोने चली जाती हूं। जन्नो ने बताया कि उनका गांव छोटा है। उन्होंने गांव छोड़ने से इन्कार कर दिया।