नई दिल्ली – सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने के लिए लाया गया विवादित अध्यादेश सरकार के गले में उलझ सकता है। न सिर्फ विपक्ष बल्कि खुद सरकार और कांग्रेस के अंदर कुछ कारणों से हो रहे विरोध के बीच राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मशविरा करने के लिए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे और कानून मंत्री कपिल सिब्बल को बुला लिया। माना जा रहा है कि उन्होंने हर पहलू पर दोनों से चर्चा की। जाहिर है कि राष्ट्रपति भी इस अध्यादेश के हर पहलू को परख कर कदम बढ़ाना चाहते हैं। खासतौर पर तब जबकि मुख्य विपक्ष भाजपा ने अध्यादेश को अनैतिक, असंवैधानिक और गैरकानूनी करार दे दिया है।
अध्यादेश के खिलाफ जहां कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा चुका है, वहीं गुरुवार को भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर अध्यादेश का विरोध किया। एक ज्ञापन में उन्होंने कहा कि विधेयक राज्यसभा की स्थायी समिति के समक्ष विचारार्थ है। दूसरी तरफ संविधान के अनुसार संसद को सदस्यता निरस्त करने के बारे में कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। योग्यता तय करने का अधिकार फिलहाल संसद के पास नहीं है। भाजपा नेताओं ने नैतिकता का भी सवाल उठाया और कहा कि सजायाफ्ता होने के बावजूद सांसदों को अलग अधिकार दिया जाना गलत है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इतनी जल्दबाजी में सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों को बचाना क्यों चाहती है। स्पष्ट है कि चुनावी माहौल में भाजपा के लिए यह अध्यादेश भी एक मुद्दा बन सकता है।
गौरतलब है कि अध्यादेश के खिलाफ एक वकील कोर्ट जा चुके हैं। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने भी आगाह कर दिया है कि अध्यादेश लागू होने के बाद वह भी कोर्ट जाएंगे। नए दोस्त बने जदयू के नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी विरोध जता दिया है।
यही कारण है कि कांग्रेस और सरकार भी तत्काल सक्रिय हो गई। पलटवार करते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने भाजपा के रुख पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि पहले तो भाजपा कोर्ट के फैसले में संशोधन करने के पक्ष में थी। अब रुख बदल दिया। लेकिन गुजरात में तीन साल की सजा पा चुके मंत्री बाबूभाई बोखारिया को बचाने में जुटी है। वह अभी भी पद पर आसीन हैं। भाजपा नेता उन्हें पद से क्यों नहीं हटा रहे हैं। हालांकि खुद कांग्रेस के अंदर अध्यादेश का विरोध शुरू हो गया है। राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा ने जहां खुला विरोध कर दिया है वहीं पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि राजनीतिज्ञों के खिलाफ बन रही जनभावना को यह अध्यादेश और मजबूत कर देगा। लाभ भले ही दूसरे दलों को भी मिले, लेकिन इसका पूरा ठीकरा कांग्रेस के सिर फूटेगा। संभवत: राष्ट्रपति भी सशंकित हैं। यही कारण है कि भाजपा प्रतिनिधिमंडल के जाते ही उन्होंने गृहमंत्री और कानून मंत्री को बुलावा भेज दिया।