इसे उत्तर प्रदेश के जिलों में पुलिस पर सूचना के अधिकार का दबाव कहें या फिर जवाब देने की निपुणता कि जिस सवाल का जवाब राज्य पुलिस मुख्यालय ने देने से इंकार कर दिया।
उसका जवाब जिला पुलिस ने बेधड़क दिया, जिसमें साफ कर दिया कि पुलिस के पास खर्च उठाने के जुगाड़ की कमी नहीं।
यह सवाल था कि गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम पर खर्च किस मद में किया जाता है।
जवाब में किसी जिले की पुलिस ने कहा कि एनजीओ और देशभक्त उठाते हैं खर्च, तो वहीं किसी ने बताया कि प्राइवेट फंड या अन्य मदों से कार्यक्रम कराए जाते हैं।
आरटीआई के तहत यूपी पुलिस मुख्यालय और 30 जिलों की पुलिस से अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने गणतंत्र की स्थापना के दिवस के समारोह के खर्च का सवाल पूछा।
जवाब में मुख्यालय ने कहा कि ऐसी कोई सूचना एकत्र नहीं की जाती। आरटीआई के जवाब में सिर्फ वही सूचना दी जाती है, जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद हो।
काल्पनिक प्रश्नों का जवाब नहीं दिया जाता है। लेकिन जिला पुलिस की ओर से जवाब देने से इंकार नहीं किया गया, बल्कि उस सच को उजागर किया गया।
अमेठी, आगरा, वाराणसी जिले की पुलिस ने कहा कि प्राइवेट फंड या अन्य मदों से गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में होने वाला खर्च किया जाता है। सरकार की ओर से इसके लिए कोई राशि उपलब्ध नहीं करायी जाती है।
अमरोहा जिला पुलिस ने कहा कि गैर सरकारी संस्थाएं और देशभक्तों की ओर से इस दिवस के कार्यक्रम का खर्च उठाया जाता है क्योंकि सरकारी मद में खर्च की कोई व्यवस्था नहीं है।
जबकि डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर बने अंबेडकर नगर जिले की पुलिस ने कहा कि इस दिवस के कार्यक्रम का खर्च उच्चाधिकारियों के विवेक पर निर्भर है।
वहीं बांदा जिला पुलिस के मुताबिक कार्यक्रम में नाश्ता, खाना और टेंट की व्यवस्था किसी मद से नहीं की जा सकती।
बागपत, बलिया, बाराबंकी, उन्नाव जिलों की पुलिस ने जवाब में कहा है कि स्वेच्छा से पुलिस वाले मिलकर कार्यक्रम का खर्च उठाते हैं।
मऊ जिले की पुलिस ने कहा है कि डिस्ट्रिक्ट एनिमिटीज फंड से कार्यक्रम कराया जाता है। बरेली, महाराजगंज, भदोही समेत अन्य कई जिलों की पुलिस ने कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाने का दावा किया है।
सभी जिलों की पुलिस के अलग जवाब पर भ्रमित आरटीआई कार्यकर्ता इस मामले को आगे ले जाना चाहते हैं ताकि उन्हें स्पष्ट जवाब मिल सके।