नई दिल्ली – राजग के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने जनता के सामने ‘शहजादा’ और ‘सेवक’ के बीच चुनाव का विकल्प देकर मिशन 2014 का आगाज कर दिया है। सधे हुए शब्दों में उन्होंने परोक्ष रूप से ‘राजतंत्र’ और ‘लोकतंत्र’ का सवाल उठा कांग्रेस के परिवारवाद पर तीखी चोट की। नेतृत्व, क्षमता, मंशा व इरादे और आखिरकार देश की इज्जत जैसे भावनात्मक बिंदुओं को छूते हुए उन्होंने एक साथ सरकार और कांग्रेस को कठघरे में घेरा। तो साथ ही अपने जीवन के उतार चढ़ाव का इजहार करते हुए भरोसा दिलाया कि अब भाजपा की ‘ड्रीम टीम’ ही भारत को बुलंदियों तक पहुंचा सकती है।
दिल्ली से चुनावी शंखनाद करते हुए मोदी के तरकश में सभी तीर मौजूद थे और लक्ष्य आसान। प्रकृति भी मेहरबान थी। दिल्ली में रविवार को उस वक्त जहां हर ओर बारिश हुई, सभा स्थल पर हल्की बूंदाबांदी और ठंडी हवा थी। वहां गरजे और बरसे केवल मोदी। दागियों को बचाने के अध्यादेश के सवाल पर मनमोहन और राहुल गांधी के बीच हुए घटनाक्रम के सहारे मोदी ने खूब तीर साधे। साथ ही अपने विशिष्ट अंदाज में मनमोहन के नेतृत्व, राहुल के आचरण, सैनिकों के लिए असंवेदनशीलता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर वहां मौजूद भीड़ का जबर्दस्त समर्थन जुटाने में कामयाब रहे।
मनमोहन का नेतृत्व
मनमोहन की पगड़ी ढ़ीली करने में मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मौका खुद सरकार और कांग्रेस ने दे दिया था। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की ओर से मनमोहन को ‘देहाती औरत’ कहे जाने पर जहां नवाज को औकात की याद दिलाई और नौजवानों से तालियां बटोरी। वहीं इसके लिए राहुल को जिम्मेदार ठहरा कर कांग्रेस को भी लपेट लिया। इसी तर्ज पर अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा के सामने जताई गई लाचारगी को भी देश लिए शर्मनाक बताया।
शहजादा बनाम सेवक
मोदी ने कहा कि कांग्रेस उपाध्यक्ष ने सरे आम मनमोहन की पगड़ी उछालकर यह साबित कर दिया है कि सरकार किसके हाथ में है। अब जनता और सरकार को सहयोग दे रहे दूसरे दलों को तय करना होगा कि देश संविधान से चलेगा या शहजादे कीच्इच्छा से। इसके साथ ही उन्होंने कभी शांत तो कभी उत्साह में नारे लगाती भीड़ के दिलों में उतरने वाला भावनात्मक दांव खेल दिया।
चाय बेचने वाले से लेकर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी बनने की गाथा को लोकतांत्रिक बता गरीबों और पिछड़ों के बीच में जगह बनाने की कोशिश की। अपनी इस पृष्ठभूमि का सहारा लेते हुए ही मोदी ने कहा कि वह न शासक थे, न हैं और न ही कभी होंगे।
परिवारवाद
मोदी के भाषण की शुरूआत ही परिवारवाद से हुई। चुटकियों के अंदाज में उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकारों के बोझ से दब गई है। दिल्ली राज्य में एक सरकार ‘मां’ की है तो दूसरी ‘बेटे’ की। जबकि केंद्र में जहां सरदार की सरकार बेअसरदार है वहीं मां और बेटे के साथ साथ ‘दामाद’ की भी सरकार चलती है।
गठबंधनतारतम्य बनाते हुए उन्होंनें गठबंधन को साथ लेकर चलने की क्षमता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि गठबंधन बनता अंकगणित से लेकिन वह चलता केमिस्ट्री से है। संप्रग सरकार में वह केमिस्ट्री कभी नहीं बन पाई। लिहाजा सहयोगी दलों को भी नेतृत्व और सरकार के आचरण पर विचार करना चाहिए। भ्रष्टाचार, नीतिगत अनिर्णयता आदि का उल्लेख करते हुए मोदी ने यह भरोसा दिलाने की कोशिश की अब कांग्रेस की डर्टी टीम नहीं भाजपा की ड्रीम टीम ही देश को पुराना गौरव दिला सकती है।