क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का सम्मान दिए जाने के मसले पर गृह मंत्रालय की अनदेखी अब भी बरकरार है।
स्वराज के नाम पर इंकलाब के नारे के साथ फांसी पर चढ़ने वाले इन तीनों क्रांतिकारियों को शहीद के दर्जे के प्रति अनभिज्ञता जता चुके गृह मंत्रालय को इस मसले पर गंभीर होने की भी कोई जल्दी नहीं।
गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह 15 अगस्त तक इस मसले के निपटारे की कोशिश में लगे भगत सिंह के पोते से मिलने की फुरसत भी नहीं निकाल पाए हैं।
भगत सिंह के सगे छोटे भाई कुलदीप सिंह के पोते यादवेंद्र सिंह दो पुश्तों की अनमोल धरोहर संभाले सरकार से इन क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए प्रयासरत हैं।
यादवेंद्र ने अमर उजाला से बातचीत में बताया कि उन्होंने पहले गृह मंत्री से मिलने की गुहार की तो उनके दफ्तर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। हार कर उन्होंने बीते छह अगस्त को गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह से मिलने की लिखित गुहार लगाई।
यादवेंद्र के मुताबिक आरपीएन के दफ्तर से उनके पत्र के बाद फोन जरूर आया। मगर यह बताने के लिए कि मंत्री संसद के मानसून सत्र में व्यस्त हैं। लिहाजा सत्र खत्म होने के बाद ही मुलाकात संभव है।
यादवेंद्र ने बताया कि उनके दादा भगत सिंह ने अंग्रेजी शासन के दौरान इसी संसद में बम मार कर जानबूझ कर गिरफ्तारी दी थी।
उनका मकसद था कि अदालत में अपनी बहस से अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का संदेश जनता तक पहुंचाया जाए। आज उसी संसद की व्यस्तता के बहाने मंत्री समय नहीं निकाल पा रहे हैं।
यादवेंद्र के मुताबिक भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सिर्फ भारत के ही नहीं बल्कि पूरे भारतीय महाद्वीप के क्रांतिकारी थे।
यहां हालात यह हैं कि भारत सरकार को ही नहीं मालूम कि इन तीनों को औपचारिक तौर पर शहीद का दर्जा दिया गया था या नहीं।
गौरतलब है कि आरटीआई के तहत गृह मंत्रालय से इन तीनों को शहीद का दर्जा दिए जाने संबंधी जानकारी मांगे जाने पर चौंकाने वाला जवाब मिला।
21 जुलाई को अमर उजाला में छपी खबर में बताया गया है कि इन तीनों को शहीद का दर्जा कब मिला इसके बारे में मंत्रालय के पास कोई सूचना नहीं है।
जवाब के मुताबिक मंत्रालय के पास इस बात की जानकारी भी नहीं कि अगर इन्हें अब तक शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है तो सरकार इसके लिए क्या कर रही है।