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राजनीतिक दलों को RTI के फंदे से निकालने पर सहमति

राजनीतिक दलों से सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जवाब हासिल नहीं किया जा सकेगा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राजनीतिक दलों को आरटीआई के फंदे से बचाने के लिए इससे संबंधित कानून में संशोधन के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है।

संशोधन प्रस्ताव में कहा गया है कि सीआईसी का राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण मानने का फैसला दलों के आंतरिक क्रियाकलापों के सुचारु रूप से संचालन में रुकावट पैदा करेगा।

राजनीतिक विरोधी इस कानून का गलत इस्तेमाल करने लगेंगे। संसद के मानसून सत्र में ही राजनीतिक दलों को इस कानून से बाहर निकालने के लिए संशोधन विधेयक पेश कर दिया जाएगा।

कैबिनेट के इस फैसले की एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक फ्रंट ने तीखी आलोचना करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाने का संकेत दिया है।

मालूम हो कि केंद्रीय सूचना आयोग के जून महीने में देश के सभी छह राष्ट्रीय दलों को इस कानून के दायरे में लाने संबंधी फैसले से सियासी हड़कंप मच गया था।

पूरे देश में जहां इस फैसले का चौतरफा स्वागत हुआ था, वहीं सभी राजनीतिक दल इस फैसले के खिलाफ एकजुट हो गए थे।

हालांकि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने आरटीआई कानून में संशोधन के प्रस्ताव का विरोध किया।

बैठक में उन्होंने कहा कि चूंकि इस फैसले का चौतरफा स्वागत हुआ है, इसलिए संशोधन प्रस्ताव पर मुहर लगने से सरकार की छवि प्रभावित होगी।

सूत्रों के मुताबिक संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने यह कहकर मोइली को चुप करा दिया इस मामले में सरकार सभी दलों की एकजुट भावनाओं का सम्मान कर रही है।

मानसून सत्र से पहले बृहस्पतिवार को ही बुलाई गई बैठक में भी सभी दलों ने एकजुट हो कर सीआईसी के फैसले का तीखा विरोध किया था।

इससे पहले सरकार में आरटीआई कानून में जरूरी संशोधन के लिए अध्यादेश लाने पर भी चर्चा हुई थी। मगर इसी बीच मानसून सत्र के कार्यक्रम की घोषणा हो जाने के बाद सरकार ने सत्र के दौरान संशोधन विधेयक पेश करने का फैसला किया।

क्या था केंद्रीय सूचना आयोग का फैसला 
जून में दिए फैसले में सीआईसी ने कहा था कि चूंकि सभी छह राष्ट्रीय राजनीतिक दल सरकार से सस्ती जमीन सहित कई अन्य सुविधाएं हासिल करते हैं, इसलिए ये सभी दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं। राजनीति में पारदर्शिता लाने के लिए इन दलों को आरटीआई के तहत लाया जाना चाहिए।

पार्टियों का तर्क
राजनीतिक दलों का कहना था कि सीआईसी का यह फैसला जनप्रतिनिधित्व कानून और संसद की भावनाओं के खिलाफ हैं। दलों का तर्क था कि चूंकि सांसद और पार्टी पारदर्शिता बनाए रखने के लिए धन सहित अन्य जानकारियां चुनाव आयोग को देते हैं। ऐसे में इस फैसले का राजनीतिक दुरुपयोग होगा।

फैसले से निराश बैरवाल
राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले सुभाष अग्रवाल और (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक फ्रंट) एडीआर के अनिल बैरवाल ने निराशा जताई है।

बैरवाल ने कहा कि हमारे सामने विकल्प खुले हैं। एडीआर ने सैकड़ों संगठनों और जानीमानी हस्तियों के हस्ताक्षर वाला पत्र सांसदों को भेजा है।

इसमें इस संशोधन का विरोध करने की अपील की गई है। अगर फिर भी बात नहीं बनती है तो इस बारे में हम अन्य विकल्पों को अपनाने पर विचार करेंगे।

ये फैसले भी बने आंख की किरकिरी
–10 जुलाई, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति से अपराधियों को दूर रखने के लिए ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि सांसद-विधायक निचली अदालत में दोषी करार दिए जाने की तिथि से ही अयोग्य हो जाएंगे।
–10 जुलाई, 2013 को ही सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि जेल से या हिरासत में होने पर चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं होगी।
–एम्स फैकल्टी में आरक्षण के खिलाफ सुुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी राजनेताओं ने जताया विरोध

सभी दल एकजुट 
मानसून सत्र से पहले बृहस्पतिवार को हुई सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने एक सुर में सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय सूचना आयोग के हाल में आए फैसलों को पलटने के लिए विधेयक लाने की मांग की।

उनका कहना था कि संसद की सर्वोच्चता सुनिश्चित की जानी चाहिए। संबंधित कानूनों में संशोधन के लिए विधेयक लाने की सभी दलों की मांग पर सरकार ने भी हामी भर दी है।

किसने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले की समीक्षा की जरूरत है। एक दिन की पुलिस हिरासत के कारण चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराया जाने संबंधी फैसला समझ के बाहर है। ऐसे फैसलों पर संशोधन लाए जाने की जरूरत है।–सुषमा स्वराज, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा

संसद सर्वोच्च है, यह साफ कर देना जरूरी है। जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अव्यवहारिक निर्णय सुनाए हैं, उसके बाद यह बेहद जरूरी हो गया है कि सरकार सर्वोच्चता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए।–डी राजा, भाकपा

सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले अव्यवहारिक और संसद की सर्वोच्चता को चुनौती देने वाले हैं। ऐसे में सरकार को हर हाल में सर्वोच्चता सुनिश्चित कराने के लिए विधेयक लाना ही चाहिए।–केडी सिंह, तृणमूल कांग्रेस

सरकार सभी दलों की इस राय से सहमत है कि संसद ही सर्वोच्च है। इसलिए संसद की सर्वोच्चता को कायम रखने के लिए सरकार हर संभव कदम उठाएगी।–कमलनाथ, संसदीय कार्यमंत्री

हम सभी संसद की सर्वोच्चता बहाल रखने के लिए एकजुट हैं। ऐसे फैसलों की समीक्षा की जरूरत है और सरकार ने हमारी राय से सहमति जताई है।–बीरेंद्रनाथ वैश्य, असम गण परिषद

राजनीति में दागी जनप्रतिनिधि
1460 सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मामले। 688 सांसदों और विधायकों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

NCR Khabar News Desk

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