गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सोशल मीडिया वेबसाइटों पर मात देने के लिए भले ही कांग्रेस ने जोर शोर से अभियान छेड़ दिया है, लेकिन इसके सफल होने पर शुरुआत में ही सवाल खड़े हो गए हैं।
दरअसल, मोदी की डिजीटल आर्मी के खिलाफ कांग्रेस ने अपनी साइबर सेना तैयार करने की ठानी है। मोदी की इस आर्मी में ऐसे साइबर विशेषज्ञ और आईटी प्रोफेशनल बाकायदा वेतन पर भर्ती किए गए हैं, जो कॉरपोरेट अंदाज में अपना काम करते हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस में बगैर पैसा दिए अभियान छेड़ने की सीख हाईकमान की ओर से सोशल मीडिया से जुड़े लोगों को दी गई है।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया से जुड़े देशभर के कार्यकर्त्ताओं को पार्टी के अभियान से जुड़ने के लिए अपने क्षेत्रों से तय संख्या में समर्थकों को जोड़ने के लिए कहा है।
मगर कार्यकर्ताओं का कहना है कि बिना पैसा दिए ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को जुटाना बहुत मुश्किल है। इसलिए उन्हें बाकायदा वेतन देकर स्वयंसेवकों को जोड़ने की अनुमति दी जाए।
खासतौर पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पहल पर बृहस्पतिवार को बुलाई गई सोशल मीडिया वर्कशाप में पार्टी के सूचना और प्रचार विभाग ने देशभर से आए लगभग 300 से ज्यादा कार्यकर्ताओं को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने के लिए स्वयंसेवकों को जुटाने का लक्ष्य दिया।
हर शहरी जिले से 50 तो ग्रामीण जिलों से 10 स्वयंसेवक बनाने का लक्ष्य दिया गया है। साथ ही हर राज्य और जिला स्तर पर सोशल मीडिया वर्कशाप बनाने के लिए कहा गया है।
मगर वर्कशॉप में भाग ले रहे ज्यादातर कार्यकर्त्ताओं को इस बात से निराशा हुई है कि उनको स्वैच्छिक आधार यानी बिना कोई आर्थिक सहायता के यह कार्यक्रम शुरू करने के लिए कहा गया है।
वर्कशॉप में कई कार्यकर्ताओं ने यह सवाल भी उठाया कि बिना पैसे के कैसे कोई इस अभियान से जुड़ने के लिए राजी होगा।
ट्विटर और फेसबुक पर पार्टी के प्रचार अभियान को सकारात्मक तरीके से चलाने के लिए कम से कम दिन में तीन से चार घंटे तो देने ही पड़ेंगे। ऐसे में किसी कामकाजी व्यक्ति या छात्र को स्वैच्छिक आधार पर इससे जोड़ने के लिए राजी करना बेहद मुश्किल होगा।
कई कार्यकर्ताओं ने पार्टी के संचार विभाग के अध्यक्ष अजय माकन और सचिव प्रिया दत्त से यह सवाल पूछा तो उनका जवाब था कि पार्टी मोदी की पेड आर्मी के आधार पर झूठे और गुमराह करने वाले प्रचार को तरजीह देना नहीं चाहती। हमें अपनी विचारधारा को फैलाना है।
मगर बड़े नेताओं के इस तर्क को ज्यादातर कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं।