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इस्लाम पर खुले मन से चर्चा

काफी समय से सोच रहा था कि इस्लाम जब एक बिंदास एकाग्र धर्म है थ्योरी के रूप में तो गड़बड़ कहाँ हुयी। धार्मिक संरचना क्या इसका जिम्मेदार है ?
कई बार ऐसा हो जाता है कि मानवीय प्रवृत्तियां अपने हिसाब से धर्म या उसकी व्यवस्था की परिभाषा मूल से दूर एक अलग ही साम्राज्य को कायम करने की कोशिश करती है। खुद के लिए नहीं, दूसरो से बेहतर दिखने के लिए। सत्ता पर काबिज होना लक्ष्य अगर हो, वाही वाही मिले ऐसा लक्ष्य हो तो गड़बड़ निश्चित है। अच्छी बाते मसलन जकात और तर्बला से निकला मुस्लिम भाईचारा, दुसरे को भी इस्लाम के पथ पर लाने की कोशिश करना। कुछ गड़बड़ है इस संरचना में क्योंकि मानव संरचना को चलाते हैं।

१ जकात – दान धर्म महत्त्वपूर्ण है। अच्छा काम है। गरीब की सेवा है मन से की गयी। जकात से इकठ्ठा धन इस्लाम की सेवा में लगता है। मतलब धर्म के कारिंदों को काम करने की जरुरत नहीं क्योंकि पता है इस व्यवस्था में पैसा आएगा !!! बस गड़बड़ शुरू। जकात सिस्टम ही इस्लाम की बुराई को पाल रहा है, मेरा ये मानना है। जिस दिन ख़तम (ऑब्लिगेशन न रह कर अपने मन से देने वाली बात शुरू हो गयी, उसी दिन अतिवादियों की चूले हिल जायेंगी, काम पर जाना पड़ेगा।)

२. मुस्लिम ब्रदर हुड – एक सपना है, मुसलमान जो एक दिखता है वो दूसरो के सापेक्ष एक दीखता है, जहाँ केवल मुसलमान हैं, वहां का हाल बर्बाद है। कोई साजिश कर रहा है, ये कर रहा है वो कर रहा है, बेकार की बाते हैं। आदमी हैं रोटी खाते हैं, गधे नहीं हैं जो जैसा लाद देगा वैसा करने और चलने लगेंगे। प्रेक्टिकल यही दिखता है मुसलिम देशो में।

३. इस्लाम को फैलाना – पहले तो इस पर व्यक्तिगत विचार – फैलाने लायक कुछ कोई बने तब तो फैलाए, ऐरे गैरे इस्लाम के हिमायती बन जाते हैं, कोई कंट्रोल सिस्टम नहीं है। दूसरा इन ऐरे गैरों का इस्लाम फैलाना आज की दुनिया के सही तरीके से इंसान बनकर रहने के बिलकुल उलट है। non interference और individuality फैक्टर के एकदम उलट। अभी इतना ही लिखा है, आशा है खुले मन से चर्चा होगी इस पर। बिना पूर्वाग्रह के।

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