पिछले 163 सालों से लोगों को अच्छी और बुरी खबर देती आ रही टेलीग्राम सेवा रविवार से बंद हो गई। इसके साथ अब कभी भी लोगों के पास तार (टेलीग्राम) नहीं पहुंचेगा।
तार को यादगार के रूप में रखने के लिए अंतिम समय में लोगों की भीड़ टेलीग्राम कार्यालयों में देखी गई। अंतिम टेलीग्राम को संग्रहालय में संरक्षित रखा जाएगा।
ईमेल, एसएमएस के जमाने में टेलीग्राम को लगभग भुला ही दिया गया। हालांकि रविवार को राजधानी दिल्ली के चार टेलीग्राम सेंटरों पर बड़ी संख्या में लोग अपने प्रियजनों को तार भेजने पहुंचे। इनमें ज्यादातर संख्या युवाओं और खासकर पहली बार टेलीग्राम करने वालों की थी।
टेलीग्राम कार्यालयों में लाइन में बुजुर्गों, गृहणियों के साथ ही कॉलेज छात्रों और कुछ बच्चे अपने अभिभावकों के साथ पहुंचे। पेशे से वकील आनंद साथियासेलन ने कहा कि वह अपनी जिंदगी में पहली बार टेलीग्राम करने आए हैं। यह मैं गांव में रह रहे अपने 96 वर्षीय दादाजी को कर रहा हूं।
रियल एस्टेट कंपनी में मैनेजर विकास अरविंद भी बरेली में रह रहे अपने अभिभावकों को टेलीग्राम करने आए थे। उन्होंने कहा कि वह इसे यादगार के रूप में अपने पास रखेंगे। कभी हजारों लोगों के लिए तेजी से संवाद का माध्यम समझे जाने वाले टेलीग्राम को आर्थिक दिक्कतों की वजह से बंद करना पड़ा।
कब शुरू हुआ था तार का सफर
1850 में टेलीग्राम सेवा कोलकाता और डायमंड हार्बर के बीच शुरू हुई थी। पहले इसका इस्तेमाल केवल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी करती थी। 1854 में इसे आम लोगों के लिए उपलब्ध कराया गया।