अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने जीन में गड़बड़ी के कारण मोटापा बढ़ने के रहस्य को सुलझाने का दावा किया है।
बढ़ी हुई तोंद के लिए जीन के एक प्रारूप एफटीओ को जिम्मेदार माना जाता है लेकिन ऐसा क्यों होता है, इसका कारण स्पष्ट नहीं था।
‘द जर्नल ऑफ़ क्लिनिकल इन्वेस्टिगेशन’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक़ वसायुक्त भोजन ज़्यादा ललचाता है और भूख के लिए जिम्मेदार हॉर्मोन ग्रेलिन के स्तर में बदलाव करता है।
मोटापा घटाने पर काम करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ग्रेलिन को प्रभावित करने वाली दवाओं से वज़न को कम किया जा सकता है।
मोटापे को पारिवारिक पृष्ठभूमि से जोड़कर देखा जाता है और माना जाता है कि किसी व्यक्ति का जेनेटिक कोड उसके मोटापे में अहम भूमिका निभाता है।
प्रयोग
हर व्यक्ति में एफटीओ जीन के दो प्रारूप होते हैं। एक मां से आता है और एक पिता से। हर प्रारूप में उच्च और कम जोखिम वाले स्वरूप होते है। जिन लोगों में दोनों उच्च जोख़िम वाले प्रारूप होते हैं, उनके मोटे होने की संभावना कम जोख़िम जीन प्रारूप वाले लोगों से 70 प्रतिशत अधिक होती है।
लेकिन कोई नहीं जानता था कि ऐसा क्यों होता है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने लोगों के दो समूहों पर प्रयोग किए। दोनों समूहों में सामान्य वज़न वाले लोगों को रखा गया लेकिन एक समूह के लोगों में उच्च जोख़िम वाले एफटीओ जीन थे जबकि दूसरे समूह के लोगों में कम जोख़िम वाले जीन थे।
पहले प्रयोग में खाने के बाद हर समूह में ग्रेलिन के स्तर को देखा गया। खाना खाने के बाद उच्च जोख़िम जीन वाले लोगों में भूख बढ़ाने वाले हॉर्मोन के स्तर में कोई कमी नहीं आई। उनमें ग्रेलिन का स्तर भी तेज़ी से बढ़ता है।
हॉर्मोन
दूसरे प्रयोगों में खाना खाने के बाद मस्तिष्क स्कैन से दोनों समूहों के बीच अंतर और स्पष्ट हो गया। उच्च जोख़िम जीन वाले लोगों के स्कैन को देखने पर पता चला कि उनमें उच्च वसा वाले खाने के प्रति लालसा कम जोख़िम जीन वाले लोगों से ज़्यादा थी।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में मोटापे से संबंधित अध्ययन केंद्र के प्रमुख डॉ. रशेल बैटरहैम ने बीबीसी से कहा, “उनका दिमाग उच्च कैलोरी वाले खाने की ही बात सोचता रहता है। जैविक रूप से वो ज़्यादा खाने के लिए ही बने होते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस रिसर्च से पता चलता है कि एफटीओ की कार्यप्रणाली समझ में आने के बाद मोटे लोगों के इलाज में मदद मिलेगी।
डॉ. बैटरहैम ने कहा कि साइक्लिंग जैसी कसरत ग्रेलिन के स्तर को घटाने का बढ़िया तरीका है और इस हॉर्मोन पर दवा कंपनियां कई अनुसंधान कर रही हैं।