नई दिल्ली – नरेंद्र मोदी का मिशन-2014 पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि लखनऊ से तेजी पकड़ेगा। मोदी के ‘ऑपरेशन उत्तर प्रदेश और बिहार’ के लिए खास तौर पर रणनीति तय की जा रही है।
कोशिश यह है कि इन सूबों के हर वर्गो तक पहुंचा जाए और उन्हें साथ जोड़ा जाए। 120 लोकसभा सीटों वाले ये दो राज्य मिशन मोदी की धुरी बनेंगे। लक्ष्य यह भी होगा कि सीटों के मामले में कोई भी राज्य अछूता न रहे।
भाजपा का चुनावी चेहरा बने मोदी ने यूं तो फरवरी में दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज से ही अपनी तैयारी शुरू कर दी थी। जमीनी लड़ाई में साइबर वार से लेकर नुक्कड़ नाटक और अन्य तरीकों से हर वर्गो को आकर्षित किया जाएगा। दरअसल भाजपा को इसका अहसास है कि उसके समर्थक तो बहुत हैं लेकिन वोटर कम।
लिहाजा शिथिल हुए कार्यकर्ताओं से लेकर नजरअंदाज रहे स्वयंसेवकों को सक्रिय करने की मुहिम तेज हुई तो जनता के साथ जुड़ने के रास्ते भी तलाशे गए हैं।
सूत्रों के अनुसार मोदी ने हर राज्य से इनपुट मंगाए हैं। उसके आधार पर ही अभियान की रूपरेखा तैयार हो रही है। रणनीति यह है कि रैली में मोदी या केंद्रीय नेता उतरें तो वह स्थानीय जनता की अपेक्षाओं से जुड़े दिखें। और, बदले में जनता उनसे जुड़े। मसलन बिहार के किसी शहर में रैली होगी तो मोदी पूरे राज्य के साथ उस शहर की अपेक्षाओं को भी संबोधित करेंगे। मोदी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में भी वोटों को स्थानीय मुद्दे प्रभावित करते हैं। लिहाजा उन मुद्दों को स्थानीय उम्मीदवारों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।
तैयारियों से जुड़े एक सूत्र के अनुसार बात सिर्फ स्थानीय लोगों की आकांक्षा और अपेक्षा की नहीं है। ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात कर रहे मोदी को इसका भी अहसास है कि कई अहम राज्यों में लड़ाई कांग्रेस से नहीं क्षेत्रीय दलों से होगी। उत्तर प्रदेश और बिहार के अलावा उड़ीसा व पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन चारों राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 183 सीटें हैं। इन पर भाजपा की पैनी नजर होगी।
मोदी की कोशिश है कि केरल जैसे राज्य में भी इस बार पार्टी का खाता जरूर खुले। अप्रैल में मोदी केरल के नारायण गुरू मठ गए थे। राज्य में नारायण गुरू के अनुयायियों की संख्या 27 फीसद है। सूबे में संघ का भी बड़ा आधार है। सूत्र के अनुसार मोदी ने संघ के उन स्वयंसेवकों की सूची बनाने का भी निर्देश दिया है जो गुरुदक्षिणा देते हैं। वह पार्टी को वोट तो डालते हैं लेकिन भाजपा की ओर से उन्हें यह अहसास नहीं दिलाया जाता कि उनकी सुध ली जाती है।
मानसून थोड़ा कम होते ही अभियान की औपचारिक शुरुआत लखनऊ से की जाएगी। इस बीच राज्यों की नब्ज देखी जाएगी और संगठन दुरुस्त किया जाएगा। सितंबर से मार्च के बीच छह-सात महीनों में सघन प्रचार अभियान चलाया जाएगा। इसमें सभी बड़े नेताओं को जोड़ा जाएगा। इस सबसे पहले हो सकता है कि मोदी खुद विभिन्न राज्यों में जाकर वहां की इकाई और कोर ग्रुप के साथ चर्चा करें, राजनीतिक समीकरण समझें और समन्वय बिठाएं।