हनीमून पैकेज के लिए नहीं थे धाम

uttarakhand-flood-51c1f72a6fcd3_lपुराने समय में कम सुविधाओं के बावजूद जगह-जगह चट्टी(पड़ाव) होने से यात्रियों को काफी आराम रहता था। ये चट्टियां आरामदायक और सुरक्षित तो होती ही थी। यात्री यहां थकान मिटाने के साथ ही एक दूसरे से संवाद कर जानकारियां लेते थे।

बदले दौर में यातायात और संचार साधनों से चट्टियां बंद होना स्वाभाविक था। इनकी जगह रहने-खाने के आधुनिक ठिकाने पनपने से कई तरह की मुश्किलें सामने आ गई। पहाड़ों में बेतरतीब यात्री बढ़े तो उसी तरह होटल और रेस्तरां की श्रृंखला खुल गई। यहां तक की नदियों को पाट कर जोखिमपूर्ण होटल बनने लगे। पहाड़ों को काटकर रेस्तरां बनने लगे।

आजादी के लगभग डेढ दशक तक चट्टियों का कुछ महत्व बना रहा। कुछ जगहों पर सड़क सुलभ थी, तो कुछ जगहों पर नहीं। तब ऋषिकेश से बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के लिए पैदल मार्ग थे। पुराने समय में इन चट्टियों की अपनी संस्कृति थी। प्रशासन ने भी इसे बनाया और कई सेठ साहूकारों ने भी अपने नाम से इन चट्टियों में धर्मशालाएं बनाई।

इन चट्टियों में यात्रियों को यात्रा के मतलब कि सभी चीजें मिलती थी, साथ ही ठहरने के लिए आसरा भी मिलता था। ये मार्ग आज की तुलना में कठिन जरूर थे मगर यात्रा रूट के पड़ावों की दूरी कम थी। कहते हैं कि ऋषिकेश से बदरीनाथ की मार्ग दूरी आज की तुलना में पहले कम थी।

इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि उत्तरकाशी-यमुनोत्री पुराने पैदल मार्ग में पड़ने वाले नाकुरी-सिंगोट गांव से यमुनोत्री का निकटवर्ती पड़ाव गंगनानी महज 20 किमी की दूरी पर पड़ता था। जबकि सड़क मार्ग से गंगनानी की दूरी 80 किमी है।

यहां बाबा काली कमली वाले ने यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशाला का निर्माण किया था। यमुनोत्री यात्रा का पड़ाव होने से सिंगोट के लोगों को डंडी-कंडी, घोडे़-खच्चर से रोजगार भी मिलता था। आज की यात्रा मार्ग में जगह-जगह जो पहाड़ों को खोद कर आधुनिक शैली में पड़ाव बने हैं।

उनसे पारिस्थितिकी चक्र बुरी तरह गड़बडाया है यहां तक कि सैलानियों व यात्रियों को समायोजित करने के सात-सात मंजिला भवनों का निर्माण किया गया है। गंगा किनारे आकर्षक नामों के साथ होटल खोलकर आधुनिक शैली में हनीमून पैकेज, हिल पैकेज देकर धामों में बुलाया जाता है। चट्टी जैसी व्यवस्थाओं में पुराने समय में यात्री कम सुविधाओं के बावजूद मन में आस्था लिए यात्राओं पर निकलते थे।