सरकार की नजर में 28 रुपया कमाने वाला गरीब नहीं

poverty-505acda1054fa_lसुरसा की तरह बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार के बीच सरकार का दावा है गरीबों की तादाद तेजी से घटी है।

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) ने शहरी क्षेत्र में 1000 रुपये प्रतिमाह यानी करीब 33 रुपये रोजना और ग्रामीण क्षेत्रों में 816 रुपये प्रतिमाह यानी रोजाना करीब 27 रुपये खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना है।

एनएसएसओ के 68वें राउंड के सर्वे के आधार पर योजना आयोग ने शहरों में 13.7 और ग्रामीण क्षेत्रों में 25.7 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे माना गया है।

आंकड़े पर सवाल

विकास से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ एनसी सक्सेना का कहना है कि योजना आयोग के अनुमानों में गरीबी रेखा को बहुत कम आंका जा रहा है।

महंगाई के दौर में रोजाना 27 रुपये में जीवन यापन बेहद मुश्किल है, लेकिन इससे ज्यादा खर्च करने वालों को गरीबी रेखा से बाहर रखा गया है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में देश की 50 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे मानने का सुझाव दिया था।

योजना आयोग का दावा
योजना आयोग का दावा है कि वर्ष 1993-94 से 2004-05 के दौरान हर साल 0.74 फीसदी गरीब कम हुई, जबकि 2004-05 से 2011-12 के दौरान गरीबों की संख्या में हर साल 2.18 फीसदी की कमी आई है।

आयोग द्वारा मंगलवार को जारी इन आंकड़ों के लिए सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में बने एक्सपर्ट ग्रुप के फार्मूले का उपयोग किया गया है।

इसके तहत प्रति व्यक्ति खर्च को गरीबी रेखा का आधार बनाया गया है। यह खर्च शहरों और गांवों में अलग होने के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों के लिए भी अलग अलग है।

योजना आयोग के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश की सिर्फ 21.9 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2004-05 में 37.2 फीसदी आबादी गरीब रेखा से नीचे थी।

गरीबों की तादाद घटी
दिसंबर, 2009 में तेंदुलकर समिति द्वारा रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद उनके फॉर्मूले की काफी आलोचना हुई थी और उसके बाद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अध्यक्षता में जून, 2012 में एक समिति गठित की गई थी।

यह समिति गरीबी के आकलन का नया फॉर्मूला देगी, लेकिन इसकी रिपोर्ट 2014 के मध्य में आनी है। इसके नतीजे का इंतजार करने में हो रही देरी के चलते राजनीतिक माहौल के लिए माकूल गरीबी के नए आंकड़ों को आयोग ने मंगलवार को जारी कर दिया।

इससे पहले वर्ष 2009-10 के आधार पर 29.8 फीसदी बीपीएल आबादी का अनुमान जारी किया गया था। सरकारी दावों पर यकीन करें तो दो साल के अंदर 7.8 फीसदी आबादी यानी 8 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से बाहर आ गए हैं। गरीबी मिटाने के मामले में बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात सबसे आगे हैं, लेकिन योजना आयोग के इन आंकड़ों पर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं।

आयोग एनएसएसओ के सर्वे के आधार पर गरीबों की संख्या का अनुमान लगाता है। आयोग ने वर्ष 2009-10 में 28.9 फीसदी आबादी को गरीबी की रेखा से नीचे बताया था, लेकिन उस वक्त सूखे और मंदी को देखते हुए वर्ष 2011-12 के आधार पर फिर से गरीबों की संख्या पता लगाने की कवायद की गई।

राज्य—-बीपीएल आबादी(फीसदी में) 2009-10—-2011-12

उत्तर प्रदेश—-37.7—-29.4
बिहार—-53.5—-33.7
गुजरात—-23—-16.6
हरियाणा—-20—-11.16
दिल्ली—-14.2—-9.91
उत्तराखंड—-18—-11.26
पंजाब—-15.9—-8.26
कुल—-29.8—-21.9