उत्तर प्रदेश में आरक्षण के मसले पर प्रदेश सरकार की मुश्किलें फिलहाल कम होती नहीं दिख रही है।
लोक सेवा आयोग की नई आरक्षण नीति पर हाईकोर्ट का फैसला अभी सुरक्षित है, वहीं एक दूसरे मामले में भी सरकार को आरक्षण अब तक जारी रखने की वजह कोर्ट को समझानी है।
सरकार को यह भी बताना है कि किसी जाति या वर्ग का सरकारी नौकरियों में ‘समुचित प्रतिनिधित्व’ तय करने का फार्मूला क्या है? समुचित प्रतिनिधित्व का सरकार के लिए क्या अर्थ है, यह भी समझाना है।
‘पीसीएस जे’ परीक्षा के अभ्यर्थी सुपर्ण समदरिया ने यह मामला याचिका के माध्यम से उठाया। उनके वकील अनिल बिसेन कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्गों को सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व तक पहुंचाना है।
इसका अर्थ यह हुआ कि किसी वर्ग को तब तक आरक्षण दिया जाना चाहिए जब तक की उसका समुचित प्रतिनिधित्व नहीं हो जाता है। सुप्रीमकोर्ट के अनुसार यह सीमा पचास प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है।
याचिका में यह मुद्दा उठाया गया कि कई दशकों से आरक्षण जारी रहने के बावजूद सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की है कि किन जातियों को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो चुका है?
अनुच्छेद 16(4) और 16(4ए) के अनुसार एक बार किसी वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाने के बाद उसे आरक्षण नहीं जारी रखा जा सकता है। सरकार ने प्रतिनिधित्व के निर्धारण के लिए अब तक कोई कमेटी या आयोग गठित नहीं किया है।
इन मुद्दों पर हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह समुचित प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ लगाती है? क्या कोई ऐसा वर्ग है, जिसे समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त होने के बाद भी आरक्षण जारी रखा गया है?
सरकार द्वारा प्रतिनिधित्व तय करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी भी मांगी गई है। यह तय है कि यदि सरकार सही आंकड़े प्रस्तुत करती है तो उसे आरक्षण की व्यवस्था को मौजूदा समय में विभिन्न वर्गों को नौकरियों में प्रतिनिधित्व की नजर से देखना होगा।
हालांकि संजीव सिंह केस में नौ जनवरी 2013 को प्रमुख सचिव के व्यक्तिगत शपथपत्र में कहा जा चुका है कि सरकार के पास नौकरियों में विभिन्न जातियों के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े नहीं हैं और इसे एकत्र करने में वक्त लगेगा।
तय है कि सरकार की मुश्किल बढ़ने वाली है क्योंकि एम नागराज केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रतिनिधित्व सरकार के विवेक पर नहीं आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए।
क्या है संविधान की व्यवस्था
– संविधान में कुछ छह मूल अधिकारों का वर्णन है।
– अनुच्छेद 15 और 16 समता के अधिकार के संबंध में है।
-अनुच्छेद 15(4) अनुसूचित जाति-जनजाति, समाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के लिए विशेष उपबंध करता है।
– अनुच्छेद 16(4) सरकारी नौकरियों में इन वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व के स्तर तक पहुंचाने की व्यवस्था करता है। इसी अनुच्छेद से सरकार को नौकरियों में आरक्षण देने की शक्ति मिलती है।
संविधान ने इन तीन बिंदुओं पर मानक तय करने का जिम्मा सरकार पर छोड़ा है।
1- समुचित प्रतिनिधित्व तय करने का अधिकार।
2- सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े लोगों की पहचान का अधिकार।
3- इन उपबंधों को लागू रखने की समय सीमा तय करने का अधिकार।
कहां से शुरू हुआ आरक्षण का सफर
-अनुच्छेद 340 में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केंद्र सरकार ने 29 जनवरी 1950 को काका कालेकर कमीशन गठित किया।
-कालेकर कमीशन ने 1955 में अपनी सिफारिश दी।
-केंद्र सरकार ने सिफारिशें मानने से इनकार किया।
– 1978 में मंडल आयोग का गठन।
-1980 में मंडल आयोग ने अपनी सिफारिश दी।
-1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गईं।