देहरादून – काश! अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के 25 दिन पहले जारी किए गए सेटेलाइट चित्रों के संकेत को भांप लिया जाता तो केदारघाटी में मची तबाही से बचा जा सकता था।
नासा ने जो चित्र जारी किए थे, उनसे साफ हो रहा है कि किस तरह केदारनाथ के ऊपर मौजूद चूराबारी व कंपेनियन ग्लेशियर की कच्ची बर्फ सामान्य से अधिक मात्रा में पानी बनकर रिसने लगी थी।
लेकिन भारतीय वैज्ञानिक यह भांपने में नाकाम रहे तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर ऐसी भीषण तबाही का कारण बन सकती हैं।
नासा ने लैंडसेट-8 सेटेलाइट के जरिये हादसे से पहले 22 मई को केदारनाथ क्षेत्र के चित्र लिए, जिसमें पता चला कि ग्लेशियर के अल्पाइन जोन से लगे भाग की बर्फ कम होती जा रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह तभी होता है जब ग्लेशियर की कच्ची बर्फ के पिघलने व जमने का अनुपात गड़बड़ा जाता है। नासा की तस्वीरों के अनुसार, इसी वजह से करीब 25 दिन पहले से ही केदारनाथ घाटी में ग्लेशियर से निकलने वाले पानी का बहाव तेज होने लगा था। यदि तंत्र तभी सक्रिय हो जाता, तो हादसा होने से पहले ही उचित आपदा प्रबंधन किए जा सकते थे।
इन चित्रों का अध्ययन करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की दुरहम यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ जियोग्राफी के प्रो. दवे पेटले ने भी एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक गर्मियों के शुरुआती महीनों में इस तरह ग्लेशियर से बर्फ पिघलने की स्थिति खतरे का संकेत थी, फिर भी इससे ज्यादा खतरा नहीं होता, यदि भारत में मानसून करीब 10 दिन पहले नहीं आता। बाकी का काम 14 से 16 जून के बीच हुई, जबरदस्त बारिश ने कर दिया। यदि मानसून समय से पहले नहीं आता तो बर्फ पिघलने की वह दर और तेज नहीं होती।
प्रो. दवे की रिपोर्ट में दोनों ग्लेशियर की जलधाराओं के मध्य एक अन्य जलधारा शुरू होने का भी जिक्र है। हालांकि खुद को केदारनाथ क्षेत्र के भौगोलिक स्वरूप से अनजान बताते हुए उन्होंने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ इतना कहा कि तबाही का जमीनी अध्ययन भी जरूरी है।
इस रिपोर्ट पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल का कहना है कि ‘हमने प्रो. दवे की रिपोर्ट का अध्ययन किया था। उसमें नासा के चित्रों के आधार पर ग्लेशियर से अधिक जलस्राव की आशंका व्यक्त की गई थी। हमारी टीम ने चार जून को ग्लेशियर का अध्ययन किया, लेकिन ऐसी आशंका नहीं थी कि ये पानी भीषण तबाही का कारण बन जाएगा।’
मौसम विभाग के कठघरे में सरकार
देहरादून। दैवीय आपदा से सक्षमता के साथ निपटने में नाकाम साबित हुई उत्तराखंड सरकार को अब मौसम विभाग की चेतावनी को नजरअंदाज करने के आरोप का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य का कहना है कि सरकार का कहना है कि कम समय में जितना हो सकता था, उतने कदम उठाए थे। दरअसल, मौसम विभाग ने 15 जून को जारी अपने बुलेटिन में जिक्र किया था कि उत्तराखंड में अगले 72 घंटों में भारी बारिश की संभावना है, जबकि 17 जून को भीषण बारिश की चेतावनी दी गई थी। सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि अगर वह चेतावनी पर ध्यान देती तो तबाही को कम किया जा सकता था।