अलग तेलंगाना राज्य के गठन को लेकर भले ही कांग्रेस और सरकार आगे बढ़ती दिख रही हो मगर पार्टी के अंदर से ही इसका विरोध भी शुरू हो गया है।
इसके साथ ही विदर्भ, बुंदेलखंड, हरित प्रदेश, बोडोलैंड और गोरखालैंड जैसे कई और छोटे राज्यों के गठन की मांग भी तेज हो सकती है। जिससे केंद्र सरकार को लोकसभा चुनाव से पहले बड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
शनिवार को तेलंगाना का विरोध करते हुए आंध्र प्रदेश के चार केंद्रीय मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की और राज्य के विभाजन पर अपना विरोध दर्ज कराया।
शुक्रवार को कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक के बाद कांग्रेस ने अलग राज्य के पक्ष में सकारात्मक संकेत दिए थे। माना जा रहा है कि आंध्र प्रदेश की मौजूदा राजधानी हैदराबाद को लेकर कुछ विवाद है।
सूत्रों का कहना है कि हैदराबाद को कुछ सालों तक आंध्र प्रदेश और अलग तेलंगाना राज्य की साझा राजधानी बनाने की बात है। शनिवार को केंद्रीय मंत्रियों पल्लम राजू, के एस राव, चिरंजीवी और डी पुरंदेश्वरी ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की।
गैर तेलंगाना क्षेत्र के दो सांसद बापीराजू और अनंतरामी रेड्डी भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे। इन्होंने एकीकृत आंध्र प्रदेश की वकालत की। उन्होंने कहा कि विभाजन से राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है और यह फैसला देश के लिए भी हितकारी नहीं होगा।
दूसरी तरफ तेलंगाना गठन के बाद उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड, पूर्वांचल और हरित प्रदेश, महाराष्ट्र में विदर्भ, असम में बोडोलैंड और बंगाल में गोरखालैंड जैसे छोटे राज्यों की मांग भी जोर पकड़ सकती है।