बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ़ के एक अध्ययन में पता चला है कि अगले दशक में तीन करोड़ से अधिक लड़कियों का ख़तना होने का ख़तरा है।
इसमें कहा गया है कि 12.5 करोड़ से अधिक लड़कियां और महिलाएं इस प्रक्रिया से होकर गुजरी हैं। आज जिन देशों में ख़तना होता है, वहाँ के अधिकांश लोग इसका विरोध कर रहे हैं।
लड़कियों के जननांगों को काटने की रस्म कुछ अफ़्रीका, मध्य पूर्व और एशियाई समुदायों में होती है। उनका मानना है कि इससे महिलाओं के कौमार्य की रक्षा होती है।
यूनिसेफ़ चाहता है कि इसे खत्म करने के लिए कदम उठाए जाएं।
घटता समर्थन
इस विषय पर यूनिसेफ़ के इस सर्वेक्षण को अब तक का सबसे बड़ा सर्वेक्षण माना जा रहा है। इसमें पाया गया कि ख़तने को लेकर महिलाओं और पुरुषों दोनों में समर्थन घट रहा है।
यूनिसेफ़ की उप कार्यकारी निदेशक गीता राव गुप्त ने कहा, ”ख़तना लड़कियों के स्वास्थ्य, कल्याण और आत्मनिर्णय के अधिकार का उल्लंघन है।”
उन्होंने कहा, ”इस रिपोर्ट से एक बात जो साफ़ होती है, वह यह कि अकेले क़ानून ही काफी नहीं है।”
इथोपिया की मेज़ा ग्रेडु आज 14 साल की हैं। उनका 10 साल की उम्र में ख़तना कर दिया गया था। अब वे इस प्रथा के खिलाफ अभियान चला रही हैं।
वे कहती हैं, ”मेरे गांव में एक लड़की है, जो मुझसे छोटी है, उसका ख़तना नहीं हुआ, क्योंकि मैंने उसके माता-पिता के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की।”
वे बताती हैं, ”मैंने उन्हें बताया कि इस ऑपरेशन से मुझे कितनी तकलीफ़ हुई थी। इससे मुझे आघात लगा था। मुझे अपने माता-पिता पर ही विश्वास नहीं हुआ।”
उन्होंने बताया, ”इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे यह बेटी के साथ नहीं होने देंगे।”
प्रथा का अंत
इसमें अफ्रीका के 29 देशों में पिछले 20 सालों में हुए अध्ययनों के आंकड़ों का विश्वेषण किया गया, जहाँ यह प्रथा आज भी जारी है। इसमें पाया गया कि 30 साल पहले की तुलना में आज लड़कियों में खतने की संभावना कम है।
कीनिया और तंजानिया में लड़कियों की माँओं की तुलना में इसकी संभावना तीन गुना कम थी। वहीं केंद्रीय अफ़्रीकी गणराज्य बेनिन, इराक़, लाइबेरिया और नाइजीरिया में इसकी दर घटकर क़रीब आधी रह जाती है। �
अध्ययन में पाया गया कि सोमालिया, गिनी, जिबूटी और मिस्र में यह व्यापक है। लेकिन चैड, गांबिया, माली, सेनेगल, सूडान या यमन में इसमें उल्लेखनीय कमी आई है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि अधिकांश लड़कियां और महिलाएं और बड़ी संख्या में पुरुष और लड़के इस प्रथा के विरोध में हैं। चाड, गिनी, सिएरा लियोन में महिलाओं से अधिक पुरुष चाहते हैं कि इस प्रथा का अंत हो।
गीता राव गुप्त कहती हैं,”अब चुनौती यह है कि लड़कियों-महिलाओं और लड़कों-पुरुषों को खुलकर और साफ़-साफ़ बोलने दिया जाए, उन्हें यह कहने दिया जाए कि वे इस नुक़सानदायक प्रथा को त्यागना चाहते हैं।”
कुछ समुदायों में लड़कियों को शादी के लायक बनाने और उनके कौमार्य को बनाए रखने के लिए ख़तना किया जाता है।
इसकी वजह से अत्यधिक रक्तस्राव, पेशाब की समस्या, संक्रमण, बांझपन और बच्चे के जन्म के समय उसकी मौत होने का ख़तरा होता है।